*महाभुजंगप्रयात सवैया*
करूं अर्चना-वंदना मैं तुम्हारी, महावीर हे ! शूर रुद्रावतारी!
कृपा-दृष्टि डालो दया दान दे दो, बढ़े बुद्धि-विद्या बनूं सद्विचारी।।
हरो दीनता-दुःख-दुर्भाग्य सारे, तुम्हीं नाथ हे! लाल-सिंदूरधारी!
सदा हाथ आशीष का शीश पे हो, यही प्रार्थना हे! महाब्रह्मचारी।।
*कुण्डलिया छंद*
मृग-से सुंदर नैन हैं, ओष्ठ-अरुण-अंगार।
यौवन के हर पोर से, फूटे मधु की धार।
फूटे मधु की धार, तार उर के झंकृत कर।
काले-कुंचित केश, झूमते अहि से कटि…
Added by रामबली गुप्ता on June 28, 2016 at 1:00pm — 4 Comments
'मत्तगयन्द सवैया'
हे! जगदीश! सुनो विनती अब, भक्त तुम्हें दिन-रैन पुकारे।
व्याकुल नैन निहार रहे मग, दर्शन को तव साँझ-सकारे।
कौन भला जग में तुम्हरे बिन, संकट से प्रभु ! मोहि उबारे?
आय करो उजियार प्रभो ! हिय, जीवन के हर लो दुख सारे।।1।।
'दुर्मिल सवैया'
जय हे जगदीश! कृपा करके, कर आय प्रभो! मम शीश धरो।
तुम मूरत बुद्धि-दया-बल के, सदबुद्धि-दया-बल दान करो।
शुचि ज्ञान-प्रकाश बहा प्रभु हे ! मन के तम-पाप-प्रमाद हरो।
हर लो हर दुर्बलता हिय के, उर…
Added by रामबली गुप्ता on June 13, 2016 at 1:00pm — 6 Comments
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