"इन दरख़्तों के टुकड़े हज़ार हुए कोई यहां गिरा, कोई वहां गिरा; कोई यहां गया, कोई वहां गया !" कटे हुए पेड़ों के शेष ठूंठों और उनकी कराहती जड़ों की ओर निहारते हुए पड़ोसी पेड़ अपनी शाखाओं का रुख़ ज़मीं की ओर करते हुए एक फ़िल्मी नग़में की तर्ज़ पर शोक-गीत गाने लगे।
"ये शहादत खाली नहीं जायेगी! दिल्ली की खिल्ली उड़वा रहे हैं दुनिया में शेख़ चिल्ली!" पास के एक ऊंचे से पेड़ ने अपना अंतिम अट्टाहास करते हुए कहा।
"नये दरख़्त कितने भी कहीं भी लगवा लें, न तो उनके बीज और जड़ों की वह गुणवत्ता…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 28, 2018 at 6:30am — 9 Comments
विकास के नाम पर
व्यापार के दाम पर,
धनाढ्य, नेता, मंत्री,
बाबाजी सब काम पर!
इंसानियत होम कर,
अनुलोम-विलोम सा
हेर-फेर कर!
बच्चों, नारी,
ग़रीब, किसान
घेर कर!
पड़ोसियों से बैर कर,
रिश्ते-नातों को
तजकर, बेच कर!
या रिश्तों के नाम
जाम, दाम, नाम
लगाकर,
दूर के आभासी
अनजाने से
रिश्ते थाम कर,
मर्यादाओं को लांघ कर,
मानव-अंग उघाड़ कर,
येन-केन-प्रकारेण
अंग-निर्वस्त्रीकरण कर,
निज-स्वतंत्रता,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 27, 2018 at 6:00am — 2 Comments
दुकान के चबूतरे पर चारों मित्र एकदम चौंकते हुए खड़े होकर अपने-अपने धर्म के सिखाये मुताबिक़ कुछ उच्चारण करते हुए अर्थी में ले जाये रहे मृतक को नमन कर श्रद्धांजलि देने लगे।
"ओह, इनके घरवालों को यह सदमा बरदाश्त करने की शक्ति दे! इन्हें स्वर्ग में स्थान दे!" अशरफ़ ने आसमान की ओर देखते हुए कुछ ऐसा ही उच्चारित किया।
"अबे, तू तो हमेशा उर्दू-अरबी में कुछ बोलता है न मय्यत पर! जन्नतनशीं और तौफ़ीक़ जैसे लफ़्ज़ों में!" रामलाल ने उसे टोक ही दिया।
"दरअसल तुम्हारे 'स्वर्ग' और…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 25, 2018 at 7:25pm — 6 Comments
धोबन ढेर सारे कपड़़े धोकर छत पर बंधे तार पर क्लिप लगा कर सूखने डाल गई थी। कुछ ही देर में तेज़ हवायें आंधी का रूप ले चुकीं थीं। घर में कोई कपड़ों की सुध नहीं ले रहा था। वे असहाय से कपड़़े अब हवा के रुख़ के संग फड़फड़ाने लगे थे।
"बड़ा मज़ा आ रहा है! अब मैं ज़ल्दी से सूख कर राहत पाऊंंगी।" तार में लगे क्लिप और आंधी के साथ अपना संतुलन बनाते हुए एक पोषाक ने कहा।
"मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा कि कैसे संभालूं अपने आप को!" एक छोटी सी आधुनिक फैशनेबल पोषाक ने क्लिप संग सब तरफ़ झूमते हुए…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 19, 2018 at 10:46pm — 7 Comments
"नहीं कमली! हम नहीं जायेंगे वहां!" इकलौती बिटिया केमहानगरीय जीवन के दीदार कर लौटी बीवी से उसकी बदली हुई सी बोली में संस्मरण सुन कर हरिया ने कहा - "हमें ऐसा मालूम होता, तो बिटिया को बेटे की तरह न पालता... आठवीं तक ही पढ़ाता! अपना खेत न बेचता! फंस गई न वो दुनिया के झमेले में, हमें यहां अकेले छोड़के!"
बेहद दुखी पति की बातें वह चुपचाप सुनती रही। हरिया ने अपने आंसू पौंछते हुए आगे कहा - "पुरखों ने जो सब कुछ हमें सिखाया था, बिटिया को भी हमने सिखा दिया था। अरे, खेत में हर किसम के सांप,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 17, 2018 at 8:26pm — 7 Comments
"ठीक है, तुम भी मेरी उपेक्षा कर आगे बढ़ जाओ, मुझे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता! बहुत सब्र है मुझमें!" सुबह की चहलक़दमी करते एक तंदुरुस्त आदमी से पतझड़ से गुज़रे सूखे दरख़्त ने कहा।
"पर उसमें भी अपने अन्य साथियों की तरह ज़रा भी सब्र नहीं है! क्या फ़ायदा उससे कुछ कहने से? उसे भी इस काम के बाद रोज़ाना की तरह दूसरे काम भी तो पूरे करना है न!" दूसरे साथी पेड़ ने उस से कहा।
"सही कहा तुमने। आज का ख़ुुुदग़र्ज़ आदमी धन-दौलत, फैशन और तरक़्क़ी की होड़ में न तो कोई रिश्ते सही तरह से निभा पा रहा है, न ही…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 15, 2018 at 9:50am — 8 Comments
विदेश से लौटे मांगीलाल की मांग पर चांदनी रौशनी में खुली हवा में उन्हें गांव की सड़क पर सैर कराई गई बैलगाड़ी में एक लालटेन लटका कर, जो उनके छात्र जीवन की निशानी थी। बैलगाड़ी चालक बब्बा जी अतीत की बातें सुनाकर छात्र रूपी मांगीलाल की तारीफ़ों के पुल बांधते हुए उनके दिलचस्प सवालों के जवाब देते जा रहे थे।
"बड़ा मज़ा आया बेलगाड़ी में घूम कर!" सिगरेट का कश लेते हुए गांव की कुछ अल्हड़ नवयौवनाओं को घूरते हुए मांगीलाल ने अपनी अगली मांग इशारों में ज़ाहिर कर दी!
"बब्बा ज़रा लालटेन उस तरफ़…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 12, 2018 at 2:00am — 5 Comments
"स्कूल में दीदी की तरह मुझे भी मेरी मम्मी और टीचर ने सिखाया था कि कब क्या करना है और कब क्या नहीं? लेकिन मम्मी की तरह शायद दीदी भी न बच पायी!" मौक़ा पाते ही पीछे के छोटे से खपरैल वाले कमरे में लालटेन की रौशनी में अपनी आंसुओं को पीती सी हुई उसने बड़ी हिम्मत के साथ आगे लिखा -"मम्मी पर तो पूरे परिवार की ज़िम्मेदारियाँ हैं, सो वह साहब की सब सहती रही, पैसों की जुगाड़ करती रही! लेकिन जब मेरी दीदी ने साहब के 'बेड-टच' की शिक़ायत मम्मी से की, तो यही जवाब मिला था कि "किसी से कुछ मत कहना, अब तो वैसा भी आम…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on June 10, 2018 at 10:44am — 5 Comments
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