221-2121-1221-212
अखबार कोई आज भी अच्छा बचा है क्या
हर सत्य जिसमें नाप के छपता खरा है क्या।१।
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राजा से पूछा करता जो डंके की चोट पर
जन के दुखों को देख के मानस दुखा है क्या।२।
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हट कर खबर के पृष्ठों से सम्पादकीय में
जनता के हित का मामला कोई उठा है क्या।३।
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जिस का लगाता दाँव है पत्रकार जान तक
निष्पक्ष सत्य सुर्खी में आता सदा है क्या।४।
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पीड़ा हो जिस में लोक की केवल छपी हुई
नेता के नित्य कर्म को लिखना घटा है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2021 at 6:41am — 3 Comments
221/2121/1221/212
पत्थर जमाना बोये जो काटों की खेतियाँ
छोड़ो न तुम तो साथियों सुमनों की खेतियाँ।१।
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कर लेंगे ये भी शौक से बेटे किसान के
लिख दो हमारे हिस्से में जख्मों की खेतियाँ।२।
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ये जो है लोकतंत्र का धोखा मिला हमें
बन्धक रखी हैं वोट दे हाथों की खेतियाँ।३।
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बदलो स्वभाव काम का हर दुख मिटाने को
किस्मत पे छाप छोड़ती कर्मों की खेतियाँ।४।
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उजड़े नगर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2021 at 1:28pm — No Comments
2122/2122/2122/212
है नहीं क्या स्थान जीवन भर ठहरने के लिए
जो शिखर चढ़ते हैं सब ही यूँ उतरने के लिए।१।
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स्वप्न के ही साथ जीवन हो सजाना तो सुनो
भावना की कूचियाँ हों रंग भरने के लिए।२।
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ये जगत बैठा के खुश हैं लोग यूँ बारूद पर
भेज दी है अक्ल सबने घास चरने के लिए।३।
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खिल के आयेगी हिना भी सूखने तो दे सनम
रंग लेता है समय कुछ यूँ उभरने के लिए।४।
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मौत का भय है न जिनको जुल्म वो सहते नहीं
जिन्दगी का लोभ काफी यार …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 23, 2021 at 7:18pm — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
इज्जत हमारी उनसे ही पहचान जग में है
सच है हमारा तात से सम्मान जग में है।१।
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वंदन उन्हीं के चरणों का करते हैं उठते ही
आशीष उन का ईश का वरदान जग में है।२।
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मागें भला क्या ईश से मालूम हमको सब
माता पिता के रूप में भगवान जग में है।३।
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सर पर पिता का हाथ है जिसके बना हुआ
वो सच स्वयं नसीब से धनवान जग में है।४।
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हमको जहाँ के खेल का अनुभव नहीं कोई
जीना उन्हीं की सीख से आसान जग में है।५।
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ये खेल ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2021 at 7:04pm — 6 Comments
तैराक खुद को जाँचने पानी में आयेगा
तब ही नया सा मोड़ कहानी में आयेगा।१।
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तुमको सफर मिला भी तो रस्ता बुहार के
रोड़ा न अब के कोई रवानी में आयेगा।२।
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सत्तर बरस में बचपना इसका गया नहीं
कब देश अपना यार जवानी में आयेगा।३।
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सोने की चिड़िया फिर से कहायेगा देश ये
जब दौर सुनहरा सा किसानी में आयेगा।४।
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देती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2021 at 6:30am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चाहत नहीं कि सब से ही मिलती दुआ रहे
केवल जगत में शौक से नेकी बचा रहे।१।
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हम को कहो न आप गुनाहों का देवता
पापों की गठरी आप की हम ही जला रहे।२।
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चाहत सभी को नींद जो आये सुकून की
इस को जरूरी रात में कोई जगा रहे।३।
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माना बुरे हैं दाग भी हमको लगे हैं पर
वो ही उठाये उँगली जो केवल भला रहे।४।
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अपनी ही आखें बन्द हैं मानो ये साथियो
अच्छे दिनों को खूब वो कब से दिखा रहे।५।
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झगड़ा न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2021 at 4:32am — 7 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
करता है जग में धर्म के लोगो न काम वो
लेकिन बताता नाम है सब को ही राम वो।१।
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कहता था हम से देश को आया सँभालने
पर उजली भोर कर रहा देखो तो शाम वो।२।
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महँगा हुआ है थाली में निर्धन का कौर भी
सेठों को मुफ्त बाँटता हर दम ईनाम वो।३।
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केवल उड़ायी नींद हो ऐसा नहीं हुआ
सपने भी लूट ले गया सब के तमाम वो।४।
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समझा न मन के दर्द को लोगो भले कभी
करता है मन की बात बहुत बेलगाम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2021 at 7:08am — 5 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
गीत में सद् भावना का ज्वार कम है
सर्वहित की कामना का ज्वार कम है।१।
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दे रहे सब सान्त्वना पर जानता हूँ
शुद्ध मन की प्रार्थना का ज्वार कम है।२।
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सिद्ध कैसे झट से होगी योग माया
आज साधक साधना का ज्वार कम है।३।
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सत्य मर्यादा टिकेगी किस तरह अब
हर किसी में वर्जना का ज्वार कम है।४।
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हर नगर श्मसान जैसा आज दिखता
किस नयन में वेदना का ज्वार कम है।५।
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2021 at 1:20pm — 11 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
लिक्खा सजा के हम ने उजालों ने जो कहा
लाया मगर अमल में अँधेरों ने जो कहा।१।
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बैठक में ला के रख दी वो शोभा बढ़ाने को
समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा।२।
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देखा जो उसको मान के आँखों का धोखा है
जाना अमर है सत्य हवाओं ने जो कहा।३।
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सोचा ही था कि शाप के परिणाम आ गये
आया असर न एक दुआओं ने जो कहा।४।
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इस दौर कह के झूठ है अन्नों की बात को
सच कह रही है देह दवाओं ने जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 3, 2021 at 11:30am — 9 Comments
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