बहुत हुआ सूरज का तपना
अब तो आओ मेघ
जम कर बरसो मेघ
तपती धरती का सीना हो ठंढा
सूखी मिट्टी महके सोंधी
बंजर सी जमीं पर
अब फैले हरियाली
ठूंठ बन गए पेड़ों के
पत्ते अब हरियाएँ
नभ पर जमकर छा जाते
गरज का बिजली कड़काते
संग में वर्षा भी लाते
गर्मी डरकर जाती भाग
मौसम हो जाता खुशहाल
पर बादल तो
इधर से आये उधर गए
हम तो आस ही लगाए रहे
खुली चोंच लिए पक्षी
प्यासे ही रह गए
खेत जोतने को
हल लिए किसान…
Added by Neelam Upadhyaya on June 30, 2018 at 3:25pm — 8 Comments
अरण्य घन
सुन स्वर लहरी
मादल थाप
पवन मंद
बिखरे मकरंद
नव अंकुर
ढीठ हवाएँ
पत्ते बुहार रहीं
पतझड़ में
पर्वत नाले
पार करती चली
चंचल नदी
मेघ ढिठौना
तपते आकाश में
बरसेगा क्या
… मौलिक एवं अप्रकाशित
(मादल की थाप का प्रसंग आशापूर्ण देवी जी की कहानी से )
Added by Neelam Upadhyaya on June 25, 2018 at 3:00pm — No Comments
अंबर अटा
रेगिस्तानी धूल से
जीना मुहाल
चढ़ती धूप
सुस्ताने भर ढूँढे
टुकड़ा छांव
खड़ी है धूप
छांव से सटकर
प्रतीक्षा सांझ
कटते पेड़
मौन रोता जंगल
सुनता कौन
… मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on June 20, 2018 at 3:30pm — 12 Comments
जीवन की पतंग
पापा थे डोर
उड़ान हरदम
आकाश की ओर
पापा सूरज की किरण
प्यार का सागर
दुःख के हर कोने में
खड़ा उनको पाया
छोटी ऊँगली पकड़
चलना मुझको सिखलाया
हर उलझन को पापा
तुमने ही सुलझाया
हर मुश्किल में पापा
प्यार हम पर बरसाया
मेरे हर आंसू ने
तुम्हारी आँखों को भिगोया
मेरे कमजोर पलों में
मेरा विश्वास बढ़ाया
तुम से बढ़कर पापा
प्यार न कोई पाया
प्यार न कोई पाया।
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on June 17, 2018 at 6:05pm — 15 Comments
झरता रहा
माँ के आशीर्वाद सा
हरसिंगार
उषा की लाली
रेशम का आँचल
वात्सल्य माँ का
.
पुलक तन
शाश्वत है बंधन
नमन मन
स्नेहिल स्पर्श
वात्सल्य का कंबल
संबल मन
…
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on June 14, 2018 at 12:30pm — 10 Comments
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