अलादीन का चिराग हूँ मैं
एक हसीन ख्वाब हूँ मैं
मचलती सुबह हूँ मैं
खिलखिलाती शाम हूँ मैं
हँसी का अंदाज हूँ मैं
प्रीत हूँ प्यार हूँ मैं
पहचान मेरी मुझसे है
दो कुलों की शान हूँ मैं
दायरों मे बंधी हूँ मैं
शर्म से सजी हूँ मैं
छाया हूँ बाबुल के आंगन की
पिया की परछाई हूँ मैं
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on July 15, 2013 at 8:00pm — 11 Comments
उन शहीदों को मेरा
सलाम है सलाम
जाँ बचाते-बचाते
दे गए अपनी जान
नाज करते हैं हम
उनके जज्बात पर
देश के मान पर
तिरंगे के सम्मान पर
जाँ बचाते रहे
बेखौफ हो निडर
एक जिद थी कि
ज्यादा से ज्याद
बचाते रहें
नेक था इरादा
काम नेक था
विधाता ने लिखा पर
कुछ और लेख था
मौत जीती मगर
हो गए वो अमर
उनको शत-शत नमन
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on July 9, 2013 at 4:30pm — 7 Comments
मंजिल को पाने की चाह में
इस कदर हम खो गए
मंजिल मिली मगर
तन्हा हम हो गए
रास्ते चलते रहे
फांसले बढ़ते गए
छूटते इस साथ को
हमने कभी चाहा था बहुत
वो हमारे थे मगर
अब किसी और के हो गए
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on July 2, 2013 at 5:30pm — 9 Comments
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