2222 2222 ,2222 222
यह भी खाया वह भी खाया ,कब तक खाता जाएगा
एक दिवस तो उगलेगा सब ,कब तक पेट पचाएगा
अपनी ढपली अपना दुखड़ा ,कब तक राग सुनाएगा
यह करता हूँ वह करता हूँ ,कब तक ढोल बजाएगा
झूठी बातों झूठे वादों ,से कब तक बहलाएगा
परख रही है जनता तुझको,कब तक मूर्ख बनाएगा
शेर खड़े हैं दरवाजे पर,छुपकर तू बैठा चूहे
हिम्मत है तो बाहर आजा,कब तक नाक कटवाएगा
सरहद…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 29, 2017 at 12:00pm — 18 Comments
२१२२ १२१२ २२
बात खाली मकान क्या करता
दास्ताँ वो बयान क्या करता
पंख कमजोर हो गये मेरे
लेके अब आसमान क्या करता
उसकी सीरत ने छीन ली सूरत
उसपे सिंघारदान क्या करता
रूठ जाते मेरे सभी अपने
चढ़के ऊँचे मचान क्या करता
नींव में झूठ की लगी दीमक
लेके ऐसी दुकान क्या करता
बाढ़ में ढह गये महल कितने
मेरा कच्चा मकान क्या…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 11, 2017 at 8:30am — 36 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कहीं मलबा कहीं पत्थर कहीं मकड़ी के हैं जाले
कहानी गाँव की कहते घरों के आज ये ताले
किया बर्बाद मौसम ने छुड़ाया गाँव घर आँगन
यहाँ दिन रात रिसते हैं दिलों में गम के ये छाले
भटकते शह्र में फिरते मिले दो वक्त की रोटी
सिसकते गाँव के चूल्हे तड़पते दीप के आले*
कहाँ संगीत झरनों के परिंदों की कहाँ चहकन
निकलते अब पहाड़ों के सुरों से दर्द के नाले
लुटा…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 8, 2017 at 6:30pm — 13 Comments
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