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Mohan Sethi 'इंतज़ार''s Blog – July 2015 Archive (4)

गुज़रा ज़माना ........इंतज़ार

कभी ऐसे भी दिन थे

होती है सोच हैरानी

बचपन हरा कर

जब जीती थी मासूम जवानी !

याद है जब मैंने

चूमी थी तेरी पेशानी

आज भी भुला नहीं पाता

है मुझ को हैरानी ! 

वो आंखें मिलाना

तेरा हाथ छूने के

नादान बहाने जुटाना

तेरी नज़र बचा कर

तुझे तकते जाना !

हवा के झोंके से

जब तेरा पल्लू मुझे छू जाना

उफ़ ...तुझ पे इसकदर मर जाना

क्यूँ होता है

दिल ऐसा दीवाना

हैरां हूँ वो भी क्या था ज़माना ! 

ये बात है इतनी पुरानी

आज…

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Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 30, 2015 at 7:00am — No Comments

आवारा बादल .......इंतज़ार

मैं हूँ एक आवारा बादल

और मुझे एहसासों से

तरबतर करता पानी हो तुम

अपने आगोश में ले तुम्हें

मस्त हवाओं से हठखेलियाँ करता

दूर तक निकल जाता हूँ

अपार उर्जा से दमकता

गर्जन करता

इस मिलन का उद्घोष करता हूँ

मगर फिर ना जाने क्यूँ

तुम बिछुड़ जाती हो मुझसे

बरस जाती हो अपने बादल को छोड़

और देखो ...मैं बिखर जाता हूँ

मेरा अस्तित्व ही मिट जाता है

जानता हूँ

इस बंज़र ज़मीन को भी

तुम्हारी प्यास रहती है

अगर तुम न बरसो

तो नया सृजन कैसे…

Continue

Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 4:06pm — 6 Comments

कव्वा चला शायर की चाल ......

2 2 2 1 / 2 2 2 2 / 2 1 222



दिल में शायरी का जब भी दोर उट्ठेगा

सबसे पहले तेरे नाम का शोर उट्ठेगा !!

पहली बारिश की रिमझिम शुरू क्या हुई

देख आज बगिया में नाच मोर उट्ठेगा !!

तेज हवाएँ तेरे इश्क़ में कुछ चलीं ऐसी

दिल में एहसासों का बबंडर जोर उट्ठेगा !!

जब आयेगा धुवाँ पड़ोस के घर के चुल्हे से

तभी मेरे हाथ से ये खाने का कोर उट्ठेगा !!

बचा कर रखना ये दिल मेरी तीरंदाजी से

वर्ना लूटने 'इंतज़ार' के दिल का…

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Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 9:34am — 21 Comments

स्वतन्त्र नदी ........इंतज़ार

बरसाती नदी सी क्यूँ हो तुम ?

किसी और की मनोदशा

निर्धारित करती है तुम्हारा बहाव

किसी की मेहेरबानी से चल पड़ती हो

तो कभी सूख जाती हो

कभी सोचा है

मेरा हाल उस मछली की तरहाँ होता है

जो बचे-खुचे कीचड़ में

तड़पती है सिर्फ़ भीगने के लिये

जिंदा रहने के लिये

और जब सैलाब आता है

तो बहुत दूर बह जाती है बेकाबू

तुम कब एक प्रवाह में स्वतन्त्र बहोगी

नदी हो... पहाड़ों से टक्कर ले जीत चुकी हो

अब कोई कैसे स्वार्थ के बांध बना

रोक सकता है तुम्हारा…

Continue

Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 7, 2015 at 7:59am — 14 Comments

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