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Harash Mahajan's Blog – July 2015 Archive (3)

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब (इस्लाही गजल )

2212 2212 2212 22

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,

देता तुझे आवाज  तेरे मंदिरों में अब |



मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन, 

क्यों इस तरह  मुहताज तेरे मंदिरों में अब |



मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़, 

कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब | 



बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र

पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |



ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो, 

मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब |…

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Added by Harash Mahajan on July 30, 2015 at 11:02am — 37 Comments

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले ( इस्लाही ग़ज़ल )

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,

जहाँ ढूँढू मैं अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले |



हजारों गम मेरे दिल में न मुझको राख ये कर दें ,

कहीं इन सुर्ख आँखों से नदी बन के न हम निकले |



तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी मैं भूल जाता था,

पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले |



किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुका हूँ मैं,

उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले |



जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में,…

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Added by Harash Mahajan on July 28, 2015 at 7:00pm — 4 Comments

अपनी साँसें भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं

अपनी साँसे भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं,

बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं |



दिल में आतिश है बहुत ये हुस्न बे जलवा नहीं

चाहता हूँ आग उसमें पर वो जलती ही नहीं |



शाम से शब ग़ैर की ज़ुल्फ़ों में जब करने लगे

रात ऐसी जो हुई फिर सुब्ह निकली ही नहीं |



जब तलक थे हमकदम, अपना सफ़र चलता रहा,

दरिया क़तरा जब हुवा, मंज़िल वो मिलती ही नहीं |



इस कदर रोया हूँ मैं आखें भी धुंधला सी गई,

आज कुछ बूँदे भी आँखों से निकलती ही नहीं |  …

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Added by Harash Mahajan on July 25, 2015 at 6:30pm — 16 Comments

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"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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