2212 2212 2212 22
बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,
 देता तुझे आवाज  तेरे मंदिरों में अब |
 
 मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन, 
 क्यों इस तरह  मुहताज तेरे मंदिरों में अब |
 
 मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़, 
 कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब | 
 
 बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र
 पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |
 
 ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो, 
 मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब |…
Added by Harash Mahajan on July 30, 2015 at 11:02am — 37 Comments
खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,
जहाँ ढूँढू मैं अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले | 
 
 हजारों गम मेरे दिल में न मुझको राख ये कर दें ,
 कहीं इन सुर्ख आँखों से नदी बन के न हम निकले |
 
 तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी मैं भूल जाता था,
 पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले |
 
 किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुका हूँ मैं,
 उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले |
 
 जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में,…
Added by Harash Mahajan on July 28, 2015 at 7:00pm — 4 Comments
अपनी साँसे भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं,
 बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं | 
 
 दिल में आतिश है बहुत ये हुस्न बे जलवा नहीं
 चाहता हूँ आग उसमें पर वो जलती ही नहीं | 
 
 शाम से शब ग़ैर की ज़ुल्फ़ों में जब करने लगे
 रात ऐसी जो हुई फिर सुब्ह निकली ही नहीं | 
 
 जब तलक थे हमकदम, अपना सफ़र चलता रहा,
 दरिया क़तरा जब हुवा, मंज़िल वो मिलती ही नहीं | 
 
 इस कदर रोया हूँ मैं आखें भी धुंधला सी गई, 
 आज कुछ बूँदे भी आँखों से निकलती ही नहीं |  …
Added by Harash Mahajan on July 25, 2015 at 6:30pm — 16 Comments
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