For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Manan Kumar singh's Blog – July 2016 Archive (7)

औकात (लघु कथा): कथा-सम्राट की जयंती पर विशेष!

विमला और विशाल झगड़ रहे हैं।कैफे में बैठे लोग यह देखकर चकराये हुए हैं।अब तक उन लोगों ने इन दोनों का हँसना-खिलखिलाना ही देखा था,पर आज तो नजारा ही कुछ और है।विमला एकदम से भिन्नायी हुई है।विशाल ने कुछ कहना चाहा,पर वह खुद उबल पड़ी-

बस करो,अब रहा ही क्या कहने को......?

-मेरा मतलब, सब कुछ तो सहमति से ही हुआ था न?

-हाँ क्यों नहीं,पर कुछ और भी तो बातें हुई थीं कि नहीं,बोलो।

-हाँ,पर शादी के लिये घर वाले राजी नहीं हैं न ।उन्हें कैसे भी पता चल गया है कि तुम वहीदा हो,विमला नहीं।…

Continue

Added by Manan Kumar singh on July 31, 2016 at 10:30pm — 4 Comments

गजल(अब नयी पहचान देगा...)

2122 2122 212

अब नयी पहचान देगा आदमी

बात पत्थर से करेगा आदमी।1



जो मरा अबतक बचाते जिंदगी

क्या कभी आगे मरेगा आदमी?2



पोंछता आँसू जमाने से रहा

खून बन अब तो बहेगा आदमी।3



लाज का फटता वसन हर मोड़ पर

अब भला कितना सियेगा आदमी।4



मोहरों का बन रहा है मोहरा

आपको पहचान लेगा आदमी?5



गलतियों पर चढ़ रही कबसे बरक

कब भला यह मान लेगा आदमी?6



ढूँढते तुम आ गये हो दूर तक

देख लो शायद मिलेगा आदमी।7

मौलिक व… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 24, 2016 at 3:11pm — 6 Comments

गजल(सो रहा माझी....)

2122 2122 2122 2

सो रहा माझी किनारा दूर लगता है

बढ़ रही कश्ती पथिक मजबूर लगता है।1



रोशनी का जो सबब हमदम कभी बनता,

आँख पे पट्टी चढ़ी मद चूर लगता है।2



सिर गिने जाते अभी तक थे जमाने में

हो रहा उल्टा नशा भरपूर लगता है।3



खेल चलता है यहाँ शह-मात का कबसे

मात चढ़ती शाहपन काफूर लगता है।4



हो रहीं सब ओर हैं बाजार की बातें

बिक गया जैसे यहाँ हर नूर लगता है।5



दाँव पर लगता यहाँ अब जो बचा कुछ था

लुट रहा कोई बिका मशकूर… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 17, 2016 at 10:00am — 5 Comments

गजल( काफियों की अब करो......)

2122 2122 2122

काफियों की अब करो पहचान फिर से

पानी बहता मत करो हिमवान फिर से।1



ढ़ल रहा कबसे घड़ा में बेझिझक वह

अब अतल से तो मिले नादान फिर से।2



आज निर्मल बह रहा कहता धरा पर

प्यास बुझती हो यही अरमान फिर से।3



मैल मन का धो रही उसकी लहर है

मत सुनाओ अब गड़ा फरमान फिर से।4



काफिये का जल बँधेगा कब हदों में ?

तूमरी में मत उठा तूफान फिर से।5



आब कह दो या कहो पानी इसे तुम

फर्क कितना है कहो गुणवान फिर से।6



बात… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 13, 2016 at 8:30am — 6 Comments

गजल(घिर गयीं कितनी घटाएँ....)

2122 2122 2122 212

घिर गयीं कितनी घटाएँ बेसबब मौसम रहा

डूबते हैं घर कहीं पर आदमी बेदम रहा।1



झेलते ही रह गये वाचाल मौसम की अदा

नम हुई धरती किसीकी तो कहीं पे गम रहा। 2



उठ गया जो सरजमीं से सुन रहा कुछ भी नहीं

बस तिरंगे के तले फहरा मुआ परचम रहा।3



श्वान भी शरमा रहे हैं भौंकने से इस कदर

मुफ्त की रोटी उड़ाकर वह दिखा दमखम रहा।4



देश-सेवा को चला वह लूट का सामान ले

लूटने की ताक में कहते यहाँ हरदम रहा।5



बाँटकर कुछ बोटियाँ… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 6, 2016 at 12:01pm — 9 Comments

गजल(आइना क्यूँ आज....)

2122 2122 212



आइना क्यूँ आज बेईमान है

चल रहा चेहरे' चढ़ा इंसान है।1



घूमता बेखौफ सीना तानकर

लग रहा यह आदमी नादान है।2



पूछते सब आइने से डाँटकर

कौन मुजरिम की बता पहचान है।3



रात में पड़ताल चेहरों की कहाँ

झुर्रियों में मस्तियों की खान है।4



सूलियाँ भी देख अब शरमा रहीं

चढ़ रहा जिसको मिला फरमान है।5



आइना पहचानता मुल्जिम नहीं

बिक रहा सब कह रहे ईमान है।6



चश्मदीदों का उजड़ता गाँव ही

हो गयी फर्जी… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 3, 2016 at 11:00pm — 4 Comments

गजल(आहटों से डर रहा....)

2122 2122 212

आहटों से डर रहा वह अाजकल

चाहतों का बस हुआ वह आजकल।1



फूल को समझा रहा है असलियत

सुरभियों को डँस रहा वह अाजकल।2



शब्द मय चुभते नुकीले दुर्ग में

राह भूला,है फँसा वह अाजकल।3



बात की गहराइयाँ समझे बिना

तंज बेढब कस खड़ा वह आजकल।4



रोशनी की चाह में खुद को भुला

हो गया है अलबला वह अाजकल।5



आदमी लगता कभी सुलझा हुआ

फिर लगा खुद ही ठगा वह अाजकल।6



चादरें हैं श्वेत सबको क्या पता

काजलों में है रँगा… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 1, 2016 at 6:30am — 8 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
12 minutes ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
3 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
12 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service