नीरवताएँ
दुखपूर्ण भावों से भीतर छिन्न-भिन्न
साँस-साँस में लिए कोई दर्दीली उलझन
मेरे प्राण-रत्न, प्रेरणा के स्रोत
तुम कुछ कहो न कहो पर जानती हूँ मैं
किसी रहस्यमय हादसे से दिल में तुम्हारे
है अखंडित वेदना भीषण
चोट गहरी है
दुख का पहाड़ है
दुख में तुम्हारे .. तुम्हारे लिए
दुख मुझको भी है
रंज है मुझको कि संवेदन-प्रेरित भी
मैं कुछ कर नहीं पाती
खुले रिसते घाव को तुम्हारे
सी नहीं…
ContinueAdded by vijay nikore on July 15, 2015 at 3:30am — 14 Comments
निशान !
लगभग ५३ वर्ष हुए जब "धर्मयुग" साप्ताहिक पत्रिका के पन्ने पलटते हुए किसी अदृश्य शक्ति नें अचानक मुझको रोक लिया, और मुझे लगा कि मेरी अंगुलियों में किसी एक पन्ने को पलटने की क्षमता न थी।
आँखें उस एक पन्ने पर देर तक टिकी रहीं, और मात्र ८ पंक्तियों की एक छोटी-सी कविता को छोड़ न सकीं। वह कविता थी "निशान" जो ५३ वर्ष से आज तक मेरे स्मृति-पटल पर छाई रही है, और जिसे मैं अभी भी अपने परम मित्रों से आए-गए साझा करता हूँ .....
…
ContinueAdded by vijay nikore on July 8, 2015 at 9:02pm — 24 Comments
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