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Sushil Sarna's Blog – July 2015 Archive (7)

बुनियाद (लघुकथा)

''सुनो बंटी के पापा , काहे इतना विलाप करते हो। ''

''बंटी की माँ .... तुम्हें क्या पता ,पिता के जाने से मेरे जीवन का एक अध्याय ही समाप्त हो गया। ''

'' मैं आपके दुःख को समझ सकती हूँ। मुझे भी पिता जी के जाने का बहुत दुःख है लेकिन धीरज तो रखना पड़ेगा। आप यूँ ही विलाप करते रहेंगे तो उनकी आत्मा को चैन कहाँ मिलेगा। '' धर्मपत्नी ने ढाढस देते हुए कहा।

''वो तो ठीक है बंटी की माँ … लेकिन आज पिता के गुजर जाने से न केवल मेरे सिर से वटवृक्ष की छाया चली गयी बल्कि ऐसा लगता है मेरा जीवन की…

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Added by Sushil Sarna on July 31, 2015 at 8:00pm — 6 Comments

ये ज़िंदगी ....

ये ज़िंदगी ....

ज़िंदगी हर कदम पर रंग बदलती है

कभी लहरों सी मचलती है

कभी गीली रेत पे चलती है

कभी उसके दामन में

कहकहों का शोर होता है

कभी निगाहों से बरसात होती है

संग मौसम के

फ़िज़ाएं भी रंग बदलती हैं

कभी सुख की हवाएँ चलती हैं

कभी हवाएँ दुःख में आहें भरती हैं

बड़ी अजीब है ज़िंदगी की हकीकत

जितना समझते हैं

उतनी उलझती जाती है

अन्ततः थक कर

स्वयं को शून्यता में विलीन कर देती है

न जाने कब

ज़हन में यादों का…

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Added by Sushil Sarna on July 29, 2015 at 8:10pm — 2 Comments

अपने अधरों से ....

अपने अधरों से ....

अपने अधरों से अधरों पर कोई कथा न लिख जाना

अंतर्मन के प्रेम सदन की कोई व्यथा न लिख जाना

श्वास  सुरों  में स्पंदन तुम्हारा

स्मृति  भाल पे चंदन  तुम्हारा

प्रेम  पंथ  की मन  कन्दरा  में

कोई विरह प्रथा न लिख जाना

अपने अधरों से अधरों पर कोई कथा न लिख जाना

अंतर्मन के प्रेम सदन की कोई व्यथा न लिख जाना

संचित पलों  की  मृदुल अनुभूति

अभी रक्ताभ अधरों पर जीवित है

तुम नीर भरे नयनों के भाग्य…

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Added by Sushil Sarna on July 23, 2015 at 5:23pm — 4 Comments

चाँद मेरा आया है.........

चाँद मेरा आया है....

क्यों अपने रूप पे

ऐ चाँद तूं इतराया है

आसमां के चाँद सुन

मेरे चाँद का तू साया है

अक्स पानी में तेरा तो

इक हसीँ छलावा है

अक्स नहीं हकीकत है वो

जो इन बाहों में समाया है

वो ख़्वाब है मेरी नींदों का

हकीकत में हमसाया है

अपने हाथों से ख़ुदा ने

महबूब को बनाया है

एक शबनम की तरह

वो हसीं अहसास है

देख उसके रूप ने

तेरे रूप को हराया है

किसकी ख़ातिर बेवज़ह

देख तू शरमाया है

मुझसे मिलने चांदनी…

Added by Sushil Sarna on July 12, 2015 at 10:43pm — 4 Comments

चेप्टर-२ - विविध दोहे

चेप्टर-२ - विविध दोहे

बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय

छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय

ढोंगी या संसार  में, मिला  न  अपना कोय

वर्तमान  की  प्रीत में, बस  धोखा  ही होय

न्यून  वस्त्र  में आ गयी, वर्तमान  की नार

लोक लाज  बिसराय  के, करें नैन तकरार

औछे  करमन से भला, कैसे सदगति होय

जैसी संगत  साथ हो,  वैसी  ही मति होय

पुष्प  छुअन  में शूल से,  कैसे दर्द न होय

टूट  के डारि  से भला,…

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Added by Sushil Sarna on July 9, 2015 at 3:30pm — 13 Comments

सिर्फ देखा है जी भर के …

सिर्फ देखा है जी भर के …

सिर्फ देखा है जी भर के  हमने तुम्हें

इस ख़ता पे  न  इतनी सज़ा दीजिये

ज़िंदगी भर हम ग़ुलामी करेंगे मगर

रुख़ से चिलमन ज़रा ये हटा दीजिये

सिर्फ देखा है जी भर  के हमने तुम्हें

इस ख़ता पे न  इतनी  सज़ा दीजिये

हम फ़कीरों  का  दर कोई होता नहीं

हर दर  पे  फ़कीर  कभी  सोता नहीं

अब  खुदा  आपको  हम बना बैठे हैं

अब पनाह दीजिये या मिटा दीजिये

सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें

इस ख़ता पे न…

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Added by Sushil Sarna on July 7, 2015 at 4:15pm — 18 Comments

चेप्टर -1 - दोहे

चेप्टर -1 - दोहे

निंदा को आतुर रहें, करें नहीं गुणगान
मैल हिया में देख के ,रूठ गए भगवान

मालिक कैसा हो गया ,  तेरा ये इंसान
बन्दे तेरे लूटता , बन  कर वो भगवान


तेरा  अजब  संसार  है,हर  कोई  बेहाल
हर मानव को यूँ लगे, जग जैसे जंजाल


संस्कार  सब  खो गए ,  बढ़ने  लगी  दरार
जनम जनम के प्यार का, टूट गया आधार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 3, 2015 at 4:01pm — 22 Comments

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