आज के दोहे :.....
चरणों में माँ बाप के, सदा नवाओ शीश।
इनमें चारों धाम हैं, इनमें बसते ईश।। १
पथ पथरीला सत्य का , झूठी मीठी छाँव।
माँ के आँचल में मिले ,सच्चे सुख की ठाँव।। २
पग-पग पर घायल करें, पुष्प वेश में शूल।
दर्पण पर विश्वास के, जमी छद्म की धूल।।३
समय सदा रहता नहीं, जीवन के अनुकूल।
एक कदम पर फूल तो , दूजे पर हैं शूल।।४
शादी करके सब कहें, शादी है इक भूल।
जीवन में न संग मिले, जीवन के अनुकूल।।५
सदा लगे…
Added by Sushil Sarna on July 30, 2018 at 2:30pm — 17 Comments
परछाईयाँ (२ क्षणिकाएं ) ....
1.
एक अंत
मृतिका पात्र में
कैद हो गया
जीवन के धुंधलके में
अर्थहीन परछाईयों का
पीछा करते करते
..............................
2.
बीते कल की
क्षत-विक्षत अभीप्सा का
शृंगार व्यर्थ है
अन्धकार को भेदो
सूरज वहीं कहीं मिलेगा
दुबका हुआ
नई अभीप्सा का
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 24, 2018 at 12:50pm — 11 Comments
क्षणिका - तूफ़ान ....
शब्
सहर से
उलझ पड़ी
सबा
मुस्कुराने लगी
देख कर
चूड़ी के टुकड़ों से
झांकता
शब् की कतरनों में
उलझता
सुलझता
जज़्बात का
तूफ़ान
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 18, 2018 at 2:17pm — 6 Comments
एक लम्हा ....
मेरे लिबास पर लगा
सुर्ख़ निशान
अपनी आतिश से
तारीक में बीते
लम्हों की गरमी को
ज़िंदा रखे था
मैंने
उस निशाँन को
मिटाने की
कोशिश भी नहीं की
जाने
वो कौन सा यकीन था
जो हदों को तोड़ गया
जाने कब
मैं किसी में
और कोई मुझमें
मेरा बनकर
सदियों के लिए
मेरा हो गया
एक लम्हा
रूह बनकर
रूह में कहीं
सो गया
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on July 18, 2018 at 12:25pm — 13 Comments
क्षणिका :विगत कल
दिखते नहीं
पर होते हैं
अंतस भावों की
अभियक्ति के
क्षरण होते पल
कुछ अनबोले
घावों के
तम में उदित होते
द्रवित
विगत कल
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 17, 2018 at 6:50pm — 5 Comments
हार ....
ज़ख्म की
हर टीस पर
उनके अक्स
उभर आते हैं
लम्हे
कुछ ज़हन में
अंगार बन जाते हैं
उन्स में बीती रातें
भला कौन भूल पाता है
ख़ुशनसीब होते हैं वो
जो
बाज़ी जीत के भी
हार जाते हैं
उन्स=मोहब्बत
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 13, 2018 at 6:41pm — 13 Comments
माँ ....
बताओ न
तुम कहाँ हो
माँ
दीवारों में
स्याह रातों में
अकेली बातों में
आंसूओं के
प्रपातों में
बताओं न
आखिर
तुम कहाँ हो
माँ
मेरे जिस्म पर ज़िंदा
तुम्हारे स्पर्शों में
आँगन में गूंजती
आवाज़ों में
तुम्हारी डाँट में छुपे
प्यार में
बताओं न
आखिर
तुम कहाँ हो
माँ
बुझे चूल्हे के पास
या
रंभाती गाय के पास
पानी के मटके के पास…
Added by Sushil Sarna on July 9, 2018 at 5:33pm — 11 Comments
आग़ोश -ए-जवानी ...
न, न
रहने दो
कुछ न कहो
ख़ामोश रहो
मैं
तुम्हारी ख़ामोशी में
तुम्हें सुन सकता हूँ
तुम
एक अथाह और
शांत सागर हो
मैं
चाहतों का सफ़ीना हूँ
इसे अल्फाज़ की मौजों पर
रवानी दे दो
मेरे वज़ूद को
आग़ोश -ए-जवानी दे दो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 6, 2018 at 12:00pm — 6 Comments
अकेली ...
मैं
एक रात
सेज पर
एक से
दो हो गयी
जब
गहन तम में
कंवारी केंचुली
ब्याही हो गयी
छोटा सा लम्हा
हिना से
रंगीन हो गया
मेरी साँसों का
कंवारा रहना
संगीन हो गया
एक अस्तित्व
उदय हुआ
एक विलीन
हो गया
और कोई
मेरे अस्तित्व की
ज़मीन हो गया
अजनबी स्पर्शों की
मैं
सहेली हो गयी
एक जान
दो हुई
एक
अकेली हो गयी
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 4, 2018 at 4:48pm — 11 Comments
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