For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – July 2018 Archive (9)

आज के दोहे....

आज के दोहे :.....



चरणों में माँ बाप के, सदा नवाओ शीश।

इनमें चारों धाम हैं, इनमें बसते ईश।। १



पथ पथरीला सत्य का , झूठी मीठी छाँव।

माँ के आँचल में मिले ,सच्चे सुख की ठाँव।। २



पग-पग पर घायल करें, पुष्प वेश में शूल।

दर्पण पर विश्वास के, जमी छद्म की धूल।।३



समय सदा रहता नहीं, जीवन के अनुकूल।

एक कदम पर फूल तो , दूजे पर हैं शूल।।४



शादी करके सब कहें, शादी है इक भूल।

जीवन में न संग मिले, जीवन के अनुकूल।।५



सदा लगे…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 30, 2018 at 2:30pm — 17 Comments

परछाईयाँ (२ क्षणिकाएं ) ....

परछाईयाँ (२ क्षणिकाएं ) ....

1.

एक अंत
मृतिका पात्र में
कैद हो गया
जीवन के धुंधलके में
अर्थहीन परछाईयों का
पीछा करते करते

..............................

2.

बीते कल की
क्षत-विक्षत अभीप्सा का
शृंगार व्यर्थ है
अन्धकार को भेदो
सूरज वहीं कहीं मिलेगा
दुबका हुआ
नई अभीप्सा का

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 24, 2018 at 12:50pm — 11 Comments

क्षणिका - तूफ़ान ....

क्षणिका - तूफ़ान ....

शब्
सहर से
उलझ पड़ी
सबा
मुस्कुराने लगी
देख कर
चूड़ी के टुकड़ों से
झांकता
शब् की कतरनों में
उलझता
सुलझता
जज़्बात का
तूफ़ान

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 18, 2018 at 2:17pm — 6 Comments

एक लम्हा ....

एक लम्हा ....

मेरे लिबास पर लगा

सुर्ख़ निशान 

अपनी आतिश से

तारीक में बीते

लम्हों की गरमी को

ज़िंदा रखे था

मैंने



उस निशाँन को

मिटाने की

कोशिश भी नहीं की



जाने

वो कौन सा यकीन था

जो हदों को तोड़ गया

जाने कब

मैं किसी में

और कोई मुझमें

मेरा बनकर

सदियों के लिए

मेरा हो गया

एक लम्हा

रूह बनकर

रूह में कहीं

सो गया

सुशील सरना

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 18, 2018 at 12:25pm — 13 Comments

क्षणिका :विगत कल

क्षणिका :विगत कल

दिखते नहीं
पर होते हैं
अंतस भावों की
अभियक्ति के
क्षरण होते पल
कुछ अनबोले
घावों के
तम में उदित होते
द्रवित
विगत कल


सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 17, 2018 at 6:50pm — 5 Comments

हार ....

हार ....

ज़ख्म की
हर टीस पर
उनके अक्स
उभर आते हैं
लम्हे
कुछ ज़हन में
अंगार बन जाते हैं
उन्स में बीती रातें
भला कौन भूल पाता है
ख़ुशनसीब होते हैं वो
जो
बाज़ी जीत के भी
हार जाते हैं

उन्स=मोहब्बत

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 13, 2018 at 6:41pm — 13 Comments

माँ   ....

माँ   .... 

बताओ न

तुम कहाँ हो

माँ

दीवारों में

स्याह रातों में

अकेली बातों में

आंसूओं के

प्रपातों में

बताओं न

आखिर

तुम कहाँ हो

माँ

मेरे जिस्म पर ज़िंदा

तुम्हारे स्पर्शों में

आँगन में गूंजती

आवाज़ों में

तुम्हारी डाँट में छुपे

प्यार में

बताओं न

आखिर

तुम कहाँ हो

माँ

बुझे चूल्हे के पास

या

रंभाती गाय के पास

पानी के मटके के पास…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 9, 2018 at 5:33pm — 11 Comments

आग़ोश -ए-जवानी ...

आग़ोश -ए-जवानी ...


न, न
रहने दो
कुछ न कहो
ख़ामोश रहो
मैं
तुम्हारी ख़ामोशी में
तुम्हें सुन सकता हूँ
तुम
एक अथाह और
शांत सागर हो
मैं
चाहतों का सफ़ीना हूँ
इसे अल्फाज़ की मौजों पर
रवानी दे दो
मेरे वज़ूद को
आग़ोश -ए-जवानी दे दो

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 6, 2018 at 12:00pm — 6 Comments

अकेली ...

अकेली ...

मैं

एक रात

सेज पर

एक से

दो हो गयी

जब

गहन तम में

कंवारी केंचुली

ब्याही हो गयी

छोटा सा लम्हा

हिना से

रंगीन हो गया

मेरी साँसों का

कंवारा रहना

संगीन हो गया

एक अस्तित्व

उदय हुआ

एक विलीन

हो गया

और कोई

मेरे अस्तित्व की

ज़मीन हो गया

अजनबी स्पर्शों की

मैं

सहेली हो गयी

एक जान

दो हुई

एक

अकेली हो गयी

सुशील…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 4, 2018 at 4:48pm — 11 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service