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दुखों से दोस्ती रख कर सुखों के घर बचाने हैं
मुझे अपनी खुशी के रास्ते खुद ही बनाने हैं
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परिंदों को पता तो है मगर मजबूर हैं वो भी
नजर तूफान की कातिल नजर में आशियाने हैं
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पलों की कर खताएँ कुछ मिटाना मत जमाने तू
किसी का प्यार पाने में यहाँ लगते जमाने हैं
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न जाने कौन सी दुनिया बसाकर आज हम बैठे
गलत मन के इरादे हैं गलत तन के निशाने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2014 at 9:43am — 10 Comments
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घाट सौ-सौ हैं दिखाए तिश्नगी ने
कौन छोड़ा इस हवस के आदमी ने
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करके वादा रोशनी का हमसे यारो
रोज लूटा है हमें तो चाँदनी ने
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राह बिकते मुल्क के सब रहनुमा अब
क्या किया ये खादियों की सादगी ने
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रात जैसे इक समंदर तम भरा हो
पार जिसको नित किया आवारगी ने
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झूठ को जीवन दिया है इसतरह कुछ
यार मेरे सत्य को अपना ठगी ने
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पास आना था हमें यूँ भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2014 at 7:46pm — 10 Comments
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चल पड़ी नूतन हवा जब से शहर की ओर यारो
गाँव के आँगन उदासी, भर रही हर भोर यारो
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अब बुढ़ापा द्वार पर हर घर के बैठा है अकेला
खो गया है आँगनों से बचपनों का शोर यारो
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ढूँढते तो हैं शिरा हम, गाँव जाती राह का नित
पर यहाँ जंजाल ऐसा मिल न पाता छोर यारो
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हो गये कमजोर रिश्ते, अब दिलों के धन की खातिर
मंद झोंके भी चलें तो टूटती हर डोर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 15, 2014 at 11:08am — 11 Comments
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दोष थोड़ा सा समय का कुछ मेरी आवारगी
सीधे-सीधे चल न पायी इसलिए भी जिंदगी
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हम तुम्हें कैसे कहें अब दूरियों को पाट लो
कम न कर पाये जो खुद हम आपसी नाराजगी
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कल हवा को भी इजाजत दी न थी यूँ आपने
आज क्यों भाने लगी है गैर की मौजूदगी
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रात-दिन करने पड़ेंगे यूँ जतन कुछ तो हमें
कहने भर से दोस्तों ये किस्मतें कब हैं…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2014 at 11:30am — 22 Comments
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सावनों में फिर हमारे घाव ताजा हो गये
रंक सुख से हम जनम के, दुख के राजा हो गये
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साथ माँ थी तो दुखों में भी सुखों की थी झलक
माँ गयी है छोड़ जब से सुख जनाजा हो गये
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कल तलक जिनकी गली भी कर रही नासाज थी
आज क्यों कर वो तुम्हारे दिल के ख्वाजा हो गये ( ख्वाजा - स्वामी )
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कोइ चाहे देह हरना और कोई दौलतें
आज …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2014 at 11:00am — 8 Comments
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