एक गीत प्रीत का
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क्यों चिंता की लहरें मुख पर आखिर क्या है बात प्रिये ?
पलकों के कोरों पर ठहरी क्यों कर है बरसात प्रिये ?
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शुष्क अधर क्यों बाल बिखर कर अलसाये हैं शानों पर ?
काजल क्रोधित होकर पिघला जा पहुँचा है कानों पर |
मीत कपोलों पर जो रहती वह गायब है अरुणाई |
ऐसा लगता है ज्यों खो दी चंद पलों में तरुणाई…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 20, 2019 at 9:00am — 4 Comments
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा
उजड़ने न देंगे चमन ये हमारा
वतन के लिए जो मेरी जान जाए
ख़ुदारा यहीं फिर जनम लें दुबारा
…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on August 15, 2019 at 11:30am — 3 Comments
अचानक अजीब मनोदशा
अँधेरी हो रही हैं धुँधली आँखें
कुछ नहीं जानता मैं अब भँवर में
कुछ भी नहीं पहचानता हूँ अंत में
यह निसत्बध्ता, यह काया
एकाकार हो रहे हैं क्या ?
साथ बंधी आ रही हैं कभी की
रात देर तक करी हमारी बातें
समुद्र की लहर-सी छलकती
अमृत के झरनों-सी हम दोनों की हँसी
आँखों में ठहरे कभी के अनुच्चरित प्रश्न
पल में तुम्हारा परिचित चिंता में डूब जाना
उफ़्फ़.. इतने वर्षों के बाद भी वही है…
ContinueAdded by vijay nikore on August 8, 2019 at 6:14pm — 8 Comments
प्रयाग में गंगा से गले मिलकर यमुना ने कहा –” दीदी अब आगे तू ही जा I मेरी इच्छा तुझसे भेंट करने की थी, वह पूरी हुयी I रही समुद्र में जाकर सायुज्य हो जाने की बात तो वह मोक्ष तुझे ही मुबारक हो I वह मुझे नहीं चाहिए I मैं अब इससे आगे नही जाऊँगी, न अकेले और न तेरे साथ I”
“मगर क्यों बहन ? तुम मेरे साथ क्यों नही चलोगी ? दुनिया मुक्ति के लिए कितने जतन करती है और तू है की मुख चुरा रही है ?”
“हां दीदी ?”
“पर क्यों ?”
“तू हमेशा ज्ञानियों के संग में रही है I…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2019 at 9:27pm — 16 Comments
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