एक ग़ज़ल.......
122 122 122 122
नजर है तो पढ़िए गजल झुर्रियों में
ये चेहरा कभी है रहा सुर्खियों में।
वतन को सजाने के वादे किए थे
सदा आप उलझे रहे कुर्सियों में।
मसीहा समझ के था अगुवा बनाया
मगर आप भी ढल गए मूर्तियों में।
चढ़ाया हमीं ने उतारेंगे हम ही
पलक के झपकते, यूँ ही चुटकियों में।
अरुण के इशारे समझ लें समय है
नसीहत को गिनिए नहीं धमकियों में।।
(मौलिक व अप्रकाशित)☺
Added by अरुण कुमार निगम on August 4, 2018 at 8:00pm — 5 Comments
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