सभी पंक्तियाँ 16-16 मात्राभार के क्रम में
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी
रोज सवेरे से सिर धुनते
शाम ढले तक याद संभाली
एक सिरा न हाथ में आया
टुकड़े टुकड़े रात खंगाली
आँगन ढूढ़ा कमरा ढूढ़ा
ढूढ़ लिए दालान अटारी
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी
देख पपीहे की अकुलाहट
आसमान में बादल आये
बुलबुल छेड़े खूब तराना
भँवरे फूलों पे मंडराये
तू भी कोयल बड़ी…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 18, 2020 at 11:00pm — 6 Comments
बह्र-ए-मीर
पतझर में भी गीत बसंती गाऊँ तो
जैसा जग है वैसा ही हो जाऊँ तो
अंदर का अँधियारा क्या छट जायेगा
कोशिश करके बाहर दीप जलाऊँ तो
शायद लौट चले आएं रूठे पलछिन
फूलों से जो उनकी राह सजाऊँ तो
कार्य हमारे भी सारे सध जायेंगे
सुविधा शुल्क लिये ये हाथ बढ़ाऊँ तो
जग सारा देखेगा 'ब्रज' के पांव फटे
जो चादर के बाहर पग फैलाऊँ तो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 14, 2020 at 10:00pm — 14 Comments
लंबे अंतराल के बाद एक ग़ज़ल के साथ
2122 1212 22
चाँद के चर्चे आसमानों में
और मेरे सभी फसानों में
अय हवा बख्श दे अभी ये लौ
हैं अँधेरे गरीबखानों में
हम सुख़नवर से पीर ज़िंदा है
दर्द का मोल क्या दुकानों में
आँखों में आँसुओं का डेरा है
ख्वाब हैं क़ैद मर्तबानों में
पंछियों के लिए सदा रखना
कोई उम्मीद आबदानों में
दिल जला 'ब्रज' जरा सुकूँ आये
रौशनी भी रहे मकानों में
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 8, 2020 at 3:16pm — 2 Comments
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