बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़: फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
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देख लो यारो नज़र भर अब नया मंज़र मेरा
आ गया हूँ मैं सड़क पर रास्ता है घर मेरा
लड़खड़ाने से लगे हैं अब तो बूढ़े पैर भी
है ख़ुदी का पीठ पर भारी बहुत पत्थर मेरा
जानता हूँ दिल है काहिल नफ़्स की तासीर में
बात मेरी मानता है कब मगर नौकर मेरा
आसमाँ से आएगा कोई हबीब-ए-शाम-ए-ग़म
यूँ नज़र भर देखता है…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 29, 2017 at 4:30pm — 6 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़:
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
क्या फ़सादात-ए-शिकस्ता प्यार से आगे लिखूँ
मुद्दआ है क्या दिल-ए-ग़मख़्वार से आगे लिखूँ
आरज़ूएं, दिल बिरिश्ता, ज़ख्म या हैरानियाँ
क्या लिखूं गर मैं विसाल-ए-यार से आगे लिखूं
दर्द टूटे फूल का तो बाग़वाँ ही जानता
सोज़िश-ए-गुल रौनक-ए-गुलज़ार से आगे लिखूँ
हक़ बयानी ऐ ज़माँ दे हौसला बातिल न हो
जो लिखूँ मैं ख़ारिजी इज़हार…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 28, 2017 at 1:30pm — 12 Comments
बहरे रमल मुसद्दस सालिम;
फ़ाएलातुन/ फ़ाएलातुन/फ़ाएलातुन;
2122/2122/2122)
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झाँक कर वो देख ले अपनी ख़ुदी में
ऐब दिखता है जिसे हर आदमी में
पास आकर दूरियों का अक्स देखा
ग़ैर जब होने लगा तू दोस्ती में
यूँ नहीं मरते हैं हम सादासिफ़त पे
रंग सातों मुन्शइब हैं सादगी में
इक पसेमंज़र-ए-ज़ुल्मत है ज़रूरी
यूँ नहीं दिखती हैं चीज़ें रौशनी में
आ तुझे भी इस्तिआरों से सवारूँ
लफ्ज़ के…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 18, 2017 at 2:30pm — 14 Comments
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