Added by kanta roy on August 30, 2015 at 6:33am — 24 Comments
आज कोचिंग से निकलने में देर हो गई थी , इसलिए घर जल्दी पहुँचने के लिए उसने मेन रोड छोड़ इसी गली से निकलने का फैसला किया था । हालांकि रात में इस गली से निकलने के लिए मम्मी ने मना किया था लेकिन आज बडी़ ही मजबूरी हो चली थी । कलाई पर बंधी घड़ी की सुई पर नजर पडते ही वो सहम उठी । गली सुनसान -सन्नाटा हुआ जा रहा था । करीब दस फर्लांग ही आगे बढीं होगी कि पीछे से आहट आई । उसे भान हुआ कि कोई पीछे आ रहा है । पलट कर देखा । दो लडके थे । स्थिति को भाँप वो लम्बी - लम्बी डग भरने लगी । पीछे से पदचाप की आवाजें…
ContinueAdded by kanta roy on August 24, 2015 at 11:30pm — 17 Comments
आज भी आँख खुलते ही रोज की ही तरह सुबह -सुबह इंतज़ार किया उसका । दरवाजा खोला ही था कि सायकिल पर चढा दुबला सा लडका दरवाजे पर चेतना की चाबी फेंक गया । रोज की ही तरह ऐसे लपककर स्वागत किया मानो बरसों से इंतज़ार किया हो उसका । अंदर ले आया और टेबल पर फैला कर परत -दर- परत तहों को खोलता गया ।चेतना मन- पौध खुलकर कुलबुलाती हुई जन्म से परिपक्व होने तक का सफर शनैः शनैः तय करने लगी ।तहें अब अपने आखिरी विराम को पहुँच , मन को गहन चिंतन में डाल ...... चेतना अपने सम्पूर्ण यौवन में स्थापित थी । तभी सहसा घड़ी…
ContinueAdded by kanta roy on August 13, 2015 at 2:00pm — 4 Comments
Added by kanta roy on August 8, 2015 at 6:00pm — 7 Comments
Added by kanta roy on August 8, 2015 at 11:30am — 13 Comments
ईमानदारी जरा चोटिल ही हुई थी कि मौके का फायदा उठा कुछ लोगों ने उसे निष्प्राण घोषित कर तुरत - फुरत में ठठरी पर कसने लगे । उन्हे डर था उसके वापस जिंदा हो गतिमान होने का ।
जिन चार कंधों पर उसकी अर्थीं उठाई जा रही थी उनमें सबसे आगे देश के कर्णधार थे उसके पीछे भ्रष्टाचार , देश के सफलतम व्यवसाई और शेयर दलाल थे ।
सबकी आँखें चमक रही थी । सबके मन में लड्डू फूट रहे थे कि पीछे रोती हुई जनता अचानक खुशी के मारे तालियाँ बजाने लगीं ।
तालियों की शोर पर काँधे देने वालों ने चौंक कर देखा तो…
Added by kanta roy on August 6, 2015 at 9:00am — 25 Comments
सावन की बुनझीसी सखी है तन में लगाए आग .......बदरिया कहाँ गई
गोर बदन कारी रे चुनरिया ,सर से सरकी आज ......बदरिया कहाँ गई
सावन भादों रात अंहारी थर - थर काँपय शरीर ...... बदरिया कहाँ गई
दादूर मोर पपीहा बोले कहाँ गये रघुनाथ.....बदरिया कहाँ गई
अमुआँ की डारी झूले नर- नारी मैं दहक अंगार ....बदरिया कहाँ गई
उमड़ उमड़े नदी जल पोखर तन में रह गई प्यास...... बदरिया कहाँ गई
सब सखी पहिरय हरीयर चुड़ी मोरा कंगना उदास ......…
Added by kanta roy on August 5, 2015 at 2:00pm — 10 Comments
Added by kanta roy on August 1, 2015 at 9:30pm — 12 Comments
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