छुटपन में
हर रोज़ बाबा का हाथ थामे निकल जाता था मैं,
सुबह की सैर को |
रास्ते की हर ठोकरों से बेख़ौफ़ लड़ता,
अकड़ता,
बढ़ता जाता था मैं |
क्यों कि जानता था,
कि कोई भी पत्थर कोई भी ठोकर मुझे गिरा न पाएगी |
क्यों कि दुनिया का सबसे मज़बूत सहारा थाम रखा है मैंने....
पर
कल सीढियां चढ़ते वक़्त
बाबा लड़खड़ा गये...और थाम लिया हाथ मेरा!
और मैं रह गया,
अतीत और वर्तमान के बीच का
सारांश ढूंढता हुआ.....
-पुष्यमित्र उपाध्याय
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Added by Pushyamitra Upadhyay on August 28, 2012 at 9:20pm — 2 Comments
फिर कोई धोखा खा बैठे
फिर द्वार तुम्हारे आ बैठे
सीधी साधी बातों में
हम अपना मन उलझा बैठे
गुड्डे गुडिया के दौर में हम तो
प्रीत का रोग लगा बैठे
जो बात कभी न समझी तुमने
हम खुद को वो समझा बैठे
जो आया ठोकर लगा गया
पत्थर दिल ऐसा पा बैठे
कच्ची सी वो उमर थी लेकिन
हम पक्की कसमें खा बैठे
दो लफ्जों की बात थी सारी
वो क्या-क्या लिखवा बैठे
जो गीत अधूरे छोड़ गए तुम
हम आज वही फिर गा बैठे
फिर कोई धोखा खा…
ContinueAdded by Pushyamitra Upadhyay on August 25, 2012 at 9:43pm — 2 Comments
आईने से निगाहें हटा लीजिये
या निगाहों में हम को पनाह दीजिये
आपको दिल ने समझा है अपना नबी
थोडा अपने भी दिल को मना लीजिये
आप ही आप हैं हर निगाह हर तरफ
आये ना गर यकीं आजमा लीजिये
चश्म बेचैन है रौशनी के लिए
ऐ निहां अब तो परदा उठा दीजिये
हम ही हम हैं दीवाने हमीं बेफहम
आप भी होश थोडा गवां दीजिये
बोलो कब रहे तिश्नगी में नज़र
इश्क का जाम अब तो लुटा दीजिये
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 23, 2012 at 8:30pm — 9 Comments
किसी को याद कर रोये, किसी को रुलाना याद आया,
जब जब तुझे जाते देखा, तेरा लौट आना याद आया..
हर सुर-साज़ देखा जब, बिकता हुआ कीमतों में
हमें तब तेरा यूँ ही, गुनगुनाना याद आया
यूं तो मेरा हाल भी न पूछा, ताउम्र किसी ने
शाम-ऐ-रुखसत पे ही क्यों सब फ़साना याद आया
उनको फुर्सत ही कहाँ, इस पल की यहाँ
और दिल तुझे वो किस्सा पुराना याद आया?
फूल को नोच कर उनके मिलने का यकीं करना
अपने मुकद्दर को यूं भी आज़माना याद…
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 22, 2012 at 8:00pm — 2 Comments
मन की बेकल धरती पर जब, कोई बदरी छा जाए
जब बात पुरानी कोई आकर, मेरी याद दिला जाए
तब नाम हमारा लेकर खुद को, नींदों में तुम भर लेना
स्वप्नों में मिलने आयेंगे, तुम आँखों को बंद कर लेना
आस मिलन की घुल जाए, हर अंगडाई हर करवट में
जब बस जाए बस मेरा चेहरा,माथे की हर सलवट में
जब बेसुध से ये कदम तुम्हारे, दौडें बरबस देहरी को
जब मेरे आने की आहट, तुम सुन बैठो हर आहट में
तब मेरा नाम लिखे हाथों को, हारी पलकों पर धर लेना
स्वप्नों में मिलने आयेंगे, तुम आँखों को…
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 21, 2012 at 10:00pm — 8 Comments
जब भी आती है याद तुम्हारी,
पलट लेता हूँ डायरी के पन्ने को,
और पढ़ लेता हूँ
उन तारीखों का वर्तमान
और सोचता हूँ
काश!
जिन्दगी भी पलट जाती,
यूं ही उन तारीखों तक............../
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 21, 2012 at 12:30am — 7 Comments
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 20, 2012 at 9:00pm — 5 Comments
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