२१२२ १२२ २१२२
इक नजर इक नजर से मिल रही है
बात जग को भला क्यूँ खल रही है
वो हसी चाल कोई चल रही है
रोज हल्दी वदन पे मल रही है
सर्द मौसम तन्हाई का अलम है
चांदनी शब् भी हमें अब खल रही है
इस तरफ हैं तडपती बाहें मेरी
उस तरफ उम्र उनकी ढल रही है
हो रहा बस अलावों का जिकर् ही
आग कब से दिलों में जल रही है
बाहुपाशो में बंधे हैं वदन दो
अब घड़ी मौत की भी टल रही…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 24, 2013 at 2:30pm — 17 Comments
ल ला ला ला ल ला ला ला ल ला ला ला ल ला ला
वतन की कौन सोचेगा अगर तुम हम नहीं तो
पहन लो हाथ में चूड़ी अगर हो दम नहीं तो
लुटी है आबरू जिसकी वो बिटिया इस चमन की
वो है जल्लाद गर है आँख किंचित नम नहीं तो
हसी मंजर हसी रुत ये भला किस काम के हैं
सफ़र में साथ जब अपने हसी हमदम नहीं तो
मजा क्या आएगा हम को भला इस जिन्दगी का
खुशी के साथ थोडा सा कहीं गर गम नहीं तो
सुखा देती जिगर के घाव तेरी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 12, 2013 at 9:49pm — 8 Comments
जलते रहे चिराग हवाओं से जूझकर
जिन्दा रहे थे हम भी गम में यूं डूबकर
चलते रहे थे हम भी लिए दिल में आस ही
वरना ठहर से जाते कभी हम भी टूटकर
बहने लगे थे हम भी लहरों के साथ ही
अब करते भी भला क्या कश्ती से छूटकर
वो हमसफ़र थे अपने मगर फिर भी मौन थे
कटती नहीं हयात मेरे यारों रूठकर
ले जायेगा मुझे भी इक दिन वो दूर यूं
अपनों के नाम होंगे नहीं लव पे भूलकर
जब से हुई हवा ये हवादिश की ही…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 8, 2013 at 3:13pm — 13 Comments
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