लघुकथा – पारिभाषिक पेटेंट
“ जनता का , जनता द्वारा, जनता पर शासन- अब्राहिम लिंकन.”
“ शाबाश बेटा.” शिक्षक के आँखों में चमक आ गई, “ अब कौन बताएगा ?”
“ सर ! मैं बताऊँ ?”
“ अरे ! तू बताएगा. कभी स्कूल समय से आया नहीं. प्रश्नोत्तर लिखे नहीं. रोज कामधंधे पर जाता है. तू क्या जानता है इस बारे में. चल तू भी बता दे ?”
“ सर ! हमारे द्वारा, हम पर शासन.”
यह सुन कर शिक्षक को एकलव्य और गुरु द्रोण याद आ गए , “ ओह ! यह तो प्रजातंत्र पर मेरी पारिभाषिक खोज हो सकती…
ContinueAdded by Omprakash Kshatriya on August 16, 2015 at 11:00am — 11 Comments
लघुकथा- रहस्य
“ इसी व्यक्ति के साथ बापू गया था . यह कह रहा था कि हम खूब पैसे कमाएंगे . बापू ने भी कहा था कि समुद्र से खूब मछलियाँ पकडूँगा . फिर ढेर सारा पैसा ले कर आऊंगा.” कहते हुए मोहन ने फोटो इंस्पेक्टर को दिया, “ साहब ! मैं वापस समुद्र के किनारे गुब्बारे बेचने जा रहा हूँ. शायद बापू या ये व्यक्ति मिल जाए.” कहते हुए मोहन जाने लगा तो इंस्पेक्टर ने कहा, “ बेटा ! इसे देख ले. ये कौन है ?”
क्षतविक्षत फोटो में अपने बापू की कमीज पहचान कर मोहन के चीख निकल गई, “ ये तो मेरा बापू है…
ContinueAdded by Omprakash Kshatriya on August 9, 2015 at 8:00am — 6 Comments
“रंजना ! ये मोबाइल छोड़ दे. चार रोटी बना. मुझे विद्यालयों में निरिक्षण पर जाना है. देर हो रही है.”
रंजना पहले तो ‘हुहाँ’ करती रही. फिर माँ पर चिल्ला पड़ी, “ मैं नहीं बनाऊँगी. मुझे आज प्रोजेक्ट बनाना है. उसी के लिए दोस्तों से चैट कर रही हूँ. ताकि मेरा काम हो जाए और मैं जल्दी कालेज जा सकू.”
तभी पापा बीच में आ गए, “ तुम बाद में लड़ना. पहले मुझे खाना दे दो.”
“क्यों ? आप का कहाँ जाना है ? कम से कम आप ही दो रोटी बना दो ?” माँ ने किचन में प्रवेश किया.
“हूँउ ! तुझे क्या…
ContinueAdded by Omprakash Kshatriya on August 7, 2015 at 7:30am — 14 Comments
लघुकथा – इच्छा
“ आज ऐसा माल मिलना चाहिए जिसे मेरे अलावा कोई और छू न सके,” कहते हुए ठाकुर साहब ने नोटों की गड्डी अपनी रखैल बुलबुल के पास रख दी और वहां से उठा कर हवेली के अपने कमरे में चल दिए.
“ जी सरकार ! इंतजाम हो जाएगा, ” कहते ही बुलबुल को याद आया कि सुबह ठकुराइन ने कहा था, ‘ बुलबुल बहन ! ठाकुर साहब तो आजकल मेरी और देखते ही नहीं. मैं क्या करूं ? ताकि उन को पा सकूं ? ’
यह याद आते ही उस की आँखों में चमक आ गई. उस ने नोटों से भरा बेग उठाया. फिर गुमनाम राह पर जाते-जाते…
ContinueAdded by Omprakash Kshatriya on August 5, 2015 at 9:00am — 26 Comments
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