For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Deepak Sharma Kuluvi's Blog – August 2010 Archive (15)

कहाँ जाएँगे

کهن جانگه



कहाँ जाएँगे



कश्ती मंझधार में है बचकर कहाँ जाएंगे

अब तो लगता है ऐ-दिल डूब जाएँगे

कोई आएगा बचाने ऐसा अब दौर कहाँ

अब तो चाहकर भी साहिल पे ना आ पाएँगे

हमनें सोचा था संवर जाएगी हस्ती अपनी

उनके दिल में ही बसा लेंगे बस्ती अपनी

इस भंवर में पहुँचाया हमें अपनों ने ही

अब इस तूफां से क्या खाक बच पाएँगे

अपनी बेबसी पे ऐ-कुल्लुवी क्या बहाएँ आंसू

वक़्त जो बच गया अब उसको कैसे काटूं

चंद लम्हों में यह 'दीपक' भी बुझ जाएगा

हम भी… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 19, 2010 at 4:19pm — 3 Comments

कोन कहता

कोन कहता ज़िन्दगी इक गम का नाम है
दर्द मैं डूबी हुई दुखों की खान है
मेरी तरह जलो और रोशन करो दुनियां को
फिर देखो यह ज़िन्दगी कितनी हसीन ख्वाब है

दीपक शर्मा कुल्लुवी

09136211486

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 5:47pm — 3 Comments

तन्हा तन्हा पाया

ग़ज़ल

تنهى تنهى بيا

तन्हा तन्हा पाया





न उसनें साथ निभाया

न इसने साथ निभाया

जब भी देखा दिल को अपनें

तन्हा तन्हा पाया

कहनें को तो सब थे अपनें

सब तो यही कहते थे

लेकिन जब भी मुड़कर देखा

साथ किसीको ना पाया

कद्र मेरे जज्वातों की

वोह क्या खाक करेंगे

जिनको मुहब्बत नफरत में

फर्क करना ना आया

कोन नहीं चाहता उनकी याद में

बनें ना यादगारें

हमनें अपनी यादों को

सबके दिल… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 3:36pm — 4 Comments

कितना बदल गया

कितना बदल गया



मेरा शहर कितना बदल गया

मेरे वास्ते अब क्या रहा

मेरा शहर कितना बदल -----

न वोह मंजिलें न वोह रास्ते

जो कभी थे मेरे वास्ते

यहाँ लुट गया मेरा आशियाँ

यहाँ हमसफ़र न कोई रहा

मेरा शहर कितना बदल -----

जो गुजर गया उसे भूल जा

मेरा दिल यह कहता है मान जा

यह वक़्त की सौगात है

मेरा वक़्त अच्छा ना रहा

मेरा शहर कितना बदल -----

अब तो अजनवी सा लगे शहर

रिश्तों में घुल चुका ज़हर

कहने को सब अपनें हैं

अपनापन अब… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 12:41pm — 4 Comments

अफ़सोस

अफ़सोस

किनारों पे चलाना मुमकिन नहीं था
डूब जाएंगे हम यह डर था हमें
खुद हमनें किनारों पे मारी थी ठोकर
आज तलक रास्ता मिला ना हमें
हम अपनीं तवाही के कसूरबार खुद हैं
संभल ही सके ना यह ग़म है हमें
यादों के नश्तर तीखे बहुत हें
यह अपनें ही ग़म हैं मंज़ूर है हमें
देखते हैं आइना जब फुर्सत में हम
सोचते हैं अक्सर हुआ क्या हमें
जलाते रहो यूँ भी 'दीपक' हैं हम
और आपकी फ़ितरत का ईल्म है हमें

दीपक शर्मा कुल्लुवी

09136211486

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 12:26pm — 2 Comments

NA JAAO

हमारी हंसी पे न जाओ यारो
दर्द तो मेरे भी दिल में होता है
लेकिन उनके ग़म की मीठी सी चुभन
रोने भी नहीं देती हमें

DEEPAK KULUVI

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 12:25pm — 1 Comment

ना करेंगे & आओ

نا کارنگه



ना करेंगे



हम दर्द अपना बाँट कर

कुच्छ कम ना करेंगे

जो लिखा है किस्मत में

उसका ग़म ना करेंगे

मिट जाएँगे हंसते हुए

यह जानते हैं हम

बेरुखी पे आपकी

शिकवा ना करेंगे

आपको भी याद तो

आएगी एक दिन

जब ना लगेगा दिल आपका

'दीपक कुल्लुवी' के बिन

आपको हो ना हो

कोई ग़म नहीं

हम तो आपकी मुहब्बत पे

एतवार करेंगे





दीपक शर्मा कुल्लुवी

داپاک شارما… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 12:22pm — 2 Comments

क्या होगा

क्या होगा

जहाँ सैक्स स्कैंडल हाकी में
इंजेक्शन लगता लौकी में
अस देश का यारो क्या होगा
वहां पड़ता सबको ही रोना
ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ
जहाँ चौड़ी छाती चोरों की
मौज है रिश्वत खोरों की
अस देश का यारो क्या होगा
वहां पड़ता सबको ही रोना
ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ
जहाँ मिलता सबकुछ नकली है
और गरीब की हालत पतली है
अस देश का यारो क्या होगा
वहां पड़ता सबको ही रोना
ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ

दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 10:48am — 2 Comments

हद

ग़ज़ल
حد

हद


ले लो कुछ मेरे भी गम दोस्तों
कब तलक आपके ग़म उठाऊंगा मैं
बह न जाएँ कभी अश्क डर है मुझे
कब तलक अपनें आसूं छुपाऊंगा मैं
आपकी याद जीने ना देगी मुझे
मोत से खुद को कब तक बचाऊंगा मैं
खुदा तो नहीं मैं भी इन्सान हूँ
ज़ख्म सीने में कब तक दबाऊंगा मैं
ना पीने की हमनें कसम तोड़ दी
आपके ख्यालों से कब तक बहलाऊंगा मैं

दीपक शर्मा कुल्लुवी

دبك شارما كلف

09136211486

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 10:45am — No Comments

कब तलक

ए ग़म कब तलक साथ चलता रहेगा

छोड़ दे मेरा साथ अब खुदा के लिए

ज़र्रा ज़र्रा टूट चुका है मेरा नाजुक सा दिल

माँ ले मेरी बात अब खुदा केलिए

दीपक कुल्लुवी

إ جم كاب طلاق ثاث شلت رهج
شهد د مرة سطح أب خودا ك لي
زارا زارا توت شوكة مرة نازك سى ديل
مان ل مري بات أب خودا ك لي
دبك شارما كلف

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 10:44am — No Comments

आखरी पन्नें

AAKHARI PANNEN
आखरी पन्नें
آخر بن

मेरे आंसुओं के
कद्रदान हैं बहुत
हम रोना नहीं चाहते
वोह बहुत रुलाते हैं

दीपक शर्मा कुल्लुवी
دبك شارما كلف

हमनें किसी के वास्ते
कुछ भी नहीं किया
अब किसको क्या बतलाएं
किस हाल में मैं जिया

दीपक शर्मा कुल्लुवी
دبك شارما كلف

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2010 at 4:23pm — 4 Comments

मैं और मेरी शायरी

मैं और मेरी शायरी


मुझे अपनी खता मालूम नहीं
पर तेरी खता पर हैराँ हूँ
तकदीर के हाथों बेबस हूँ
अफ़सोस है फिर भी तेरा हूँ

दीपक शर्मा कुल्लुवी

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2010 at 4:21pm — 2 Comments

कातिल हैं

قتل حین



कातिल हैं



तेरी बेरुखी तेरा ग़म

मेरी तकदीर में शामिल है

कभी तो करते हमपे यकीं

के हम भी तेरे काबिल हैं

तेरी बेरुखी तेरा ग़म----

लाख जुदाई हो तो क्या

यादों में कभी हो ना कमीं

बचा लेंगे मंझधार से भी

हम ही तेरे साहिल हैं

तेरी बेरुखी तेरा ग़म----

क़त्ल भी कर दो उफ़ ना करें

हँसते हँसते मर जाएंगे

ना ज़िक्र करेंगे दुनियां से

कि आप ही मेरे कातिल हैं

तेरी बेरुखी तेरा ग़म----

हम 'दीपक' थे जल जाते… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2010 at 2:10pm — 5 Comments

प्राकृति से खिलवाड़

प्राकृति से खिलवाड़



प्राकृति से खिलवाड़ होगा तो प्राकृतिक आपदा आएगी ही I



कहीं बाढ़ कहीं आग कहीं सूखे की मार कहीं बादल फटने की घटनाएँ कहीं भूकंप आज एक आम सी बात हो गई है I कारण केवल एक ही है प्राकृति से खिलवाड़ I पहाड़ों जंगलों खेत खलिहानों को काट काटकर बड़े बड़े भवन,होटल बन गए I भूमाफिया जंगल माफिया राज कर रहे हैं I गरीब लोग परेशान हैं I वृक्ष कटते जा रहे हैं I धीरे धीरे हम प्रलय की और जाते जा रहे हैं I समय रहते हम लोगों में जागरूकता नहीं आई तो वो दिन दूर नहीं जब इस धरा का… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2010 at 12:10pm — No Comments

MERI SHAYARI

आपकी यादों का खज़ाना लिए

इक रोज़ चले जाएँगे हम

याद तो करोगे ज़रूर

पर कहाँ आ पाएँगे हम

दीपक कुलुवी



दो कतरा-ए-शराब पास न होती

तो क़यामत होती

तमाम रात बीत जाती

तेरी याद ही न जाती
DEEAP SHARMA KULUVI

09136211486

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2010 at 12:08pm — 3 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service