गजल
बहर - 212 1212 1212 1212
काफिया - अर, रदीफ - मियाँ
पत्थरों के जंगलों से भर गए शहर मियाँ
दादी-नानी सँग गए वो सांस लेते घर मियाँ
कल को एक बार आसमान से वो झांक लें !
किस तरह मिला सकोगे पुरखों से नजर मियाँ ?
मत उखड़ ! यही लिहाज कर लिया, बहुत किया
जो नजर बचा के दूर से गए गुजर मियाँ
आग का उफान कौन सा ये इन्कलाब है
लाए किसके वास्ते दहकती दोपहर मियाँ
हमको क्या पता हमारा तो कभी दखल न था
तुम…
Added by Sulabh Agnihotri on August 13, 2015 at 8:33pm — 2 Comments
गजल
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बहर - 212 1212 1212 1212
काफिया - अर, रदीफ - मियाँ
किस्म-किस्म के जहर हैं हमपे बेअसर मियाँ
उम्र बीती आदमी का झेलते जहर मियाँ
दर्द बाँटने अगर तू आया है अवाम का
आसमान से जरा जमीन पर उतर मियाँ
सब तुम्हारे गुम्बदों की शान से सिहर गए
झोपड़ी मेरी तबाह कर गए कहर मियाँ
चाह मंजिलों की थी न जीत की ललक रही
वक्त ही गुजारना था, तय किए सफर मियाँ
अंधड़ों से लड़ता एक दीप मिल ही जाएगा
देख अपने…
Added by Sulabh Agnihotri on August 12, 2015 at 6:39pm — 17 Comments
बहर - 212 212 212 212
लहरें पतवार के संग किलकती रहीं
मन के पाँवों में पायल सी बजती रहीं
पालकी बैठ सपने गए साथ में
रास्ते भर उमंगें लरजती रहीं
शोखियों की सहेली बनीं चूडि़याँ
लाजवन्ती निगाहें बरजती रहीं
सपनों में रातरानी ने घर कर लिया
कल्पनायें दुल्हन बन के सजती रहीं
देह भर में खिलीं क्यारियाँ-क्यारियाँ
चाहतें ओढ़ घूंघट मचलती रहीं
तितलियों सी निगाहें उड़ीं दूर तक…
Added by Sulabh Agnihotri on August 11, 2015 at 3:00pm — 10 Comments
बहर - 22 12122 22 12122
जब-जब किसी परिंदे ने पंख फड़फड़ाए
वो बदहवास होकर ख़ंजर निकाल लाए
दुनियाँ की चाल चलनी जिस रोज़ से शुरू की
अपनी निगाह से हम गिर के फिर उठ न पाये
वो जानते हैं उनका भगवान जानता है
कानून से भले ही सब जुर्म बख्शवाये
रोज़े खतम न हों तो, क्या चाँद का निकलना
हम ईद मान लेंगे जब चाँद मुस्कुराये
मंजि़ल थी क़ामयाबी, ऊँचा महल अटारी
ईमान बेच आये, ईंटें ख़रीद लाये
हर फूल के…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on August 10, 2015 at 3:18pm — 12 Comments
बहर - 212 212 212 212
काफिया - अनी, रदीफ - डाल दी
धुंध यादों पे भरसक घनी डाल दी
बन्द कमरे में वो अलगनी डाल दी
चिथड़ा-चिथड़ा चटाई बिछी देख कर
उसने खा के तरस चांदनी डाल दी
नाम अनचाहे पर्याय भय का बना
हादसों ने अजब रोशनी डाल दी
उम्र के मशवरे चल पड़े स्वप्न भी
ला के आंखों में हीरक कनी डाल दी
वक्त का जायका था कसैला बड़ा
जिक्र भर ने तेरे चाशनी डाल दी
श्याम का नाम तूने लिया क्या…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on August 9, 2015 at 11:30am — 8 Comments
बहर - 2212 1212 22 1212
वो भ्रम तुम्हारे प्यार सा बेहद हसीन था
सपनों के आसमान की मानो जमीन था
सारी थकान खींच ली गोदी में लेटकर
बच्चा वो गीत रूह का ताजातरीन था
हर खत में अपनी खैरियत, उसको दुआ लिखी
माँ यह कभी न लिख सकी, कुछ भी सही न था
मन, प्राण, आँख द्वार पर, बेकल बिछे रहे
कुनबा तमाम जुड़ गया, आया वही न था
अँजुरी मेरी बँधी रही और सारा रिस गया
वो प्यार रेत से कहीं ज्यादा महीन…
Added by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 10:00am — 20 Comments
सच कहने की हलफ़ उठाई
अपनों से दुश्मनी निभाई
जिसके हाथ तुला दी उसने
पल्ले में पासंग लटकाई
दीपक तले अंधेरा देखा
देखी रिश्तों की गहराई
हम भी बर्फ़-बर्फ़ हैं केवल
जब से पाई है ऊँचाई
शेर कटघरे के अन्दर हो
कुछ ऐसे ही है सच्चाई
अपने ही दुखड़ों में खोये
कैसे पढ़ते पीर पराई
फूट पड़ा आवेग पिघलकर
जब सावन की पाती आई
जिसने कपड़े आप उतारे
उसको कैसी जगत…
Added by Sulabh Agnihotri on August 5, 2015 at 11:35am — 18 Comments
सुरभि की छाँव में आकर हुआ दरपन सहज कायल
तुम्हारा रूप बादल सा इबादत की तरह निर्मल
नहाकर ओस से निकली प्रकृति की नायिका तड़के
उषा की बाँह फैलाये विमोहित रवि हुआ चंचल
न दो व्यवधान अलियों को उन्हें करने निवेदन दो
सुवासित प्रीति का उपवन, समर्पण के खिले शतदल
समूचा सींच डाला मन, बदन, अस्तित्व रिमझिम ने
तुम्हारी याद सावन सी बरसती हर घड़ी, हर पल
नदी की धार पर लिक्खा किसी ने गीत प्राणों का
बहा जब मन तरल होकर, लहर भी हो उठी…
Added by Sulabh Agnihotri on August 4, 2015 at 11:02am — 13 Comments
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