22 22 22 22 22 22 22 22 -- बहरे मीर
छोटी मोटी बातों में वो राय शुमारी कर लेते हैं
और फैसले बड़े हुये तो ख़ुद मुख़्तारी सर लेते हैं
वहाँ ज़मीरों की सच्चाई हम किसको समझाने जाते
दिल पे पत्थर रख के यारों रोज़ ज़रा सा मर लेते हैं
चाहे चीखें, रोयें, गायें फ़र्क नहीं उनको पड़ता, पर
जैसे बच्चा कोई डराये , वालिदैन सा डर लेते हैं
कल का नीला आसमान अब रंग बदल कर सुर्ख़ हुआ है
पंख नोच कर सभी पुराने, चल बारूदी पर लेते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 5:28pm — 18 Comments
गुड़ मिला पानी पिला महमान को
2122 2122 212
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तब नज़र इतनी कहाँ बे ख़्वाब थी
और ऐसी भी नहीं बे आब थी
नेकियाँ जाने कहाँ पर छिप गईं
इस क़दर उनकी बदी में ताब थी
गैर मुमकिन है अँधेरा वो करे
बिंत जो कल तक यहाँ महताब थी
बे यक़ीनी से ज़ुदा कुछ बात कह
ठीक है, चाहत ज़रा बेताब थी
डिबरियों की रोशनी, पग डंडियाँ
थीं मगर , बस्ती बड़ी शादाब थी
शादाब-…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 23, 2016 at 8:30am — 24 Comments
2122 2122 212 -
की मुहब्बत पर न जल जाना हुआ
जल उठूँ, ऐसा न मस्ताना हुआ
इक अक़ीदत बढ के मस्ज़िद हो गई *--- श्रद्धा
इक अक़ीदा चल के बुतखाना हुआ ---- विश्वास ,
वो न आयें, तो रहीं मजबूरियाँ
हम न पहुँचे तो ये तरसाना हुआ
बात उनकी सच बयानी हो गई
हम हक़ीक़त जब कहे , ताना हुआ
आपने कैसी खुशी बाँटी हुज़ूर
चेह्रा चेह्रा आज ग़मख़ाना हुआ
चाहते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 17, 2016 at 9:30am — 14 Comments
क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये
22 22 22 22 22 2 -- बहरे मीर
तुमने भी अपने हिस्से के पल पाये
मिली भाव की आँच, कभी क्या गल पाये
शब्दों का हर बाण चलाया तुमने पर
क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये
तेल डाल कर दिया कर जला छोड़ दिया
वो जानें, वो जल पाये ना जल पाये
समय इशारा किया हमेशा खतरों का
समझ इशारा कितने यहाँ सँभल पाये ?
खूब कोशिशें हुईं कि हम बदलें लेकिन
वर्तमान के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 14, 2016 at 7:54am — 9 Comments
22 22 22 22 22 2 -- बहरे मीर
सब कुछ जाना पहचाना सा लगता है
मेरा ‘मै’ ही अनजाना सा लगता है
जिसकी अपने अन्दर से पहचान हुई
वो फिर सबको दीवाना सा लगता है
मन का खाली पन फैला यूँ वुसअत में
जग सारा अब वीराना सा लगता है
घर के हर कमरे की चाहत अलग हुई
बूढ़ा छप्पर गम ख़ाना सा लगता है
दिल का हर कोना दिखलाये हैं लेकिन
हर दिल में इक तहखाना सा लगता है
अपनेपन के अंदर भी अब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 14, 2016 at 7:30am — 12 Comments
22 22 22 22 22 22 - बहरे मीर
अर्थ निकालें, उनको लाली हम भी दे दें
जो भी मर्ज़ी आये गाली हम भी दे दें
किसी शहर में हुआ सुना है आज धमाका
कोई खुश है, आओ ताली हम भीं दे दें
दूर बहुत, आये हैं अपने आकाओं से ,
थोड़ी सी उनको रखवाली हम भी दे दें
थाली के बैंगन वैसे तो साथ लगे. पर
कोई कारण, कोई थाली हम भी दे दें
वैसे तो तैनाती दिखती सभी बाग़ में
फर्दा की खातिर कुछ माली हम भी दे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 6, 2016 at 9:22am — 10 Comments
22 22 22 22 22 22 बहरे मीर
फोकट की ये बातें हमको मत गिनवाओ
नकली उख़ड़ी सांसें, हमको मत गिनवाओ
खंज़र वाले हाथ कभी काँपे क्या उनके ?
आज हुई प्रतिघातें, हमको मत गिनवाओ
वर्षों से सूरज का ख़्वाब दिखाते आये
अब तो काली रातें हमको मत गिनवाओ
शहर शहर को तोड़ तोड़ के गाँव करो तुम
बची खुची चौपालें हमको मत गिनवाओ
फुलवारी के बीच बनी थी हर पगडंडी
कोलतार की सड़कें हमको मत गिनवाओ
क्षितिज…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:05pm — 12 Comments
22 22 22 22 22 22
कैसे दुर्योधन को कोई मोहन कह ले
और सुदामा मित्र बने तो, दुश्मन कहले
मुझको तेरी बाहों का घेरा जन्नत है
मेरी बाहों को चाहे तू बन्धन कह ले
मै रातों को चीख, नींद से उठ जाता हूँ
तू समझे तो इसको मेरी तड़पन कह ले
अब केवल कंक्रीट दिखेंगे शहर नगर में
बन्द आँख कर तू इसको ही मधुबन कह ले
विष ही वमन किया हर पत्ता, हवा चली जब
तू उन बीजों को बोया, तू चंदन कह…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:03pm — 17 Comments
2122 2122 212
जानवर भी देख कर रोने लगा
न्याय अब काला हिरण होने लगा
आइने की तर्ज़ुमानी यूँ हुई
आइने का अर्थ ही खोने लगा
हंस सोचे अब अलग किसको करूँ
दूध जब पानी नुमा होने लगा
ऐ ख़ुदा ! कैसा दिया तू आसमाँ
था यक़ीं जिस पर, क़हत बोने लगा
बदलियों ! कुछ तो रहम दिल में रखो
चाँद अब तो साँवला होने लगा
आग से बुझती कहाँ है आग , फिर
जब्र से क्यूँ ज़ब्र वो धोने लगा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 1, 2016 at 9:00am — 23 Comments
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