घने जंगलों के बीच जगह जगह लाल झंडे लगे हुए थे. सैनिकों की जैसी वर्दी में कुछ लोग आदिवासियों को समझा रहे थे, “सुनो इस जंगल, जमीन और सारे संसाधनों पर सिर्फ तुम्हारा और तुम्हारा ही हक़ है, इन पूंजीपतियों के और इनकी रखैल सरकार के खिलाफ, हम तुम्हारे लिए ही लड़ रहें है, इनको तो हम नेस्तनाबूद कर देंगें !”
“पर कामरेड अब तो सरकार हम पर ध्यान दे रही है, सड़क पानी उद्योग की व्यवस्था भी कर रही है, क्यों न इस लड़ाई को छोड़ दिया जाए, वैसे भी सालों से कितना खून बह रहा…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on August 4, 2017 at 11:43pm — 3 Comments
कितनी सहज हो तुम
कोई रिश्ता नही
मेरा ओर तुम्हारा
फिर भी
अनगिनत पढ़ी जा रही हो,मुझे
बिन कुछ कहे
बस मुस्कुरा कर
अनवरत सुनी जा रही हो ,मुझे
बस यही अहसास काफी है
संपूर्ण होने का,मेरे लिए !!
"मौलिक व अप्रकाशित"
© हरि प्रकाश दुबे
Added by Hari Prakash Dubey on August 2, 2017 at 11:30pm — 2 Comments
“बेटा एक बात कहूं क्या?”
“हाँ बोल न माँ, पर अपनी बहू के बारे में नहीं।“
माँ चुप हो गयी, फिर बोली “बेटा, अपने से जुड़े हुए लोगों का महत्व समझना चाहिये, हमे देखना चाहिये की वो हमसे कितना प्यार करते हैं, हमे भी उनको उतना ही स्नेह और महत्व देना चाहिये, कभी-कभी हम अपने से स्नेह करने वालों से, चाहे वो कोई भी क्यों न हों, इस तरह का व्यवहार करने लग जाते हैं, जैसे ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ ।“
बेटा हो सकता है वो आपको, आपके इस तरह के उपेक्षापूर्ण…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on August 1, 2017 at 9:02pm — 9 Comments
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