बंसी का बजाना खेल भी है
गिरिवर का उठाना खेल नहीं
भक्तों के भारी संकट में
दुख दर्द मिटाना खेल नहीं है !!
एक विप्र सुदामा आया था
वो भेंट में तंदुल लाया था
पल भर में ही दीन दुखी को
धनवान बनाना खेल नहीं !!
कौरव दल द्रुपद दुलारी की
सुन कर पुकार दुखियारी की
दो गज की सारी में देखो
अंबार लगाना खेल नहीं !!
था कंस बड़ा अत्याचारी
देता था सबको दुख भारी
उसको जा मारा मथुरा…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on August 17, 2014 at 3:00pm — 29 Comments
बहुत सह लिये तानें
बेबुनयादी ....नारी का धूमिल अस्तित्व
कांति विहीन सा लागने लगा
पुरुष के झूठे प्रलोभन में-
उलझती सी गई स्त्री
पुरुषों की पेचीदे फरमाइशों में
ऊपरी बनावट में बेचारी इतनी
उलझी कि अपने भीतर की -
सुंदरता को खो बैठी ।
एक विचार विमर्श ने उसको झकझोरा
जब उसे अपने, होने का भान हुआ
तो स्त्री बागी हो गई
घायल शेरनी की तरह
उसने अब ये कह डाला --
की नारी जापानी गुड़िया…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on August 8, 2014 at 11:30pm — 9 Comments
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