अंगूठी (लघु कथा )
'नहीं,नहीं … देखो अब इस घर में रहना शायद मुमकिन नहीं है। 'रेनू ने गुस्से में अपने पति रणधीर से कहा और बैग में अपने कपड़ों को रखने लगी। ''दीपू चलो अपने खिलोने उठाओ और अपने बैग में रखो। ''रेनू ने अपने सात साल के बेटे को करीब करीब डांटते हुए कहा। दीपू भौंचका सा डर कर अपने पापा की तरफ देखकर अपने खिलौने बैग में रखने लगा। ''देखो रेनू ! यूँ छोटी छोटी बातों पर रूठ कर ज़िंदगी के बड़े फैसले नहीं लिए जाते। क्या हुआ अगर मम्मी ने तुम्हें बर्तन साफ़ करने के लिए कह दिया। उनकी…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 31, 2015 at 2:39pm — 10 Comments
ख़्वाब :....
हकीकत के बिछोने पर
हर ख़्वाब ने दम तोड़ा है
नहीं, नहीं
ख़्वाब कहाँ दम तोड़ते हैं
हमेशा इंसान ने ही दम तोड़ा है
हर टूटता ख़्वाब
इक नए ख़्वाब का आगाज़ होता है
हर नया ख़्वाब
फिर इक तड़प दे जाता है
और चलता रहता है
सूखे हुए गुलाबों की
सूखी महक में जीने का सिलसिला
इंसान को शबनमी ख़्वाबों में
फ़ना होने की
आदत सी हो गई है
बस, ख्वाब को मंज़िल समझ
अंधेरों से लिपट कर जीता है
दर्द को साँसों में घोल…
Added by Sushil Sarna on August 25, 2015 at 3:57pm — 4 Comments
चेप्टर-२ -कुछ क्षणिकाएँ :
1.
वो साकार है या निराकार है
पता नहीं
वो है
मगर दिखता नहीं
फिर भी वो
जीवन का आधार है
शायद उसी को
दुनिया कहती है
ईश्वर
………………............
2.
कितना विचित्र है
हमारा साथ होना
एक लम्बी चुप
सांसें भी निःशब्द
एक दूसरे के वास्ते
भाव शून्यता
पत्थर सा प्यार
दम तोड़ते सात फेरों के वादे
उठायेंगे सात जन्म
जर्जर होता …
Added by Sushil Sarna on August 13, 2015 at 12:30pm — 2 Comments
ग्रीटिंग कार्ड (लघु कथा).......
आज सुशील अपने बेटे के बर्थडे पर बहुत खुश था। कवि होने के नाते उसने अपने पितृभाव को तो कागज़ पर उतार दिया था लेकिन फिर भी सोचा कि इसके साथ अगर एक ग्रीटिंग कार्ड भी दे दिया जाए तो बेटा खुश हो जाएगा। ग्रीटिंग कार्ड की बड़ी सी शॉप में जाकर वो कार्ड देखने लगा। कुछ देर के बाद दुकानदार ने पास आकर कहा '' सर, क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ। '' सुशील ने युवा जोड़ों की भीड़ में सकपकाते हुए कहा '' अरे हाँ , देखिये दरअसल मुझे बाप द्वारा बेटे को बर्थडे पर दिए…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 3:50pm — 22 Comments
मील के पत्थर....
पत्थर पर तो हर मौसम
बेअसर हुआ करता है
दर्द होता है उसको
जिसका सफ़र हुआ करता है
सिर्फ दूरियां ही बताता है
निर्मोही मील का पत्थर
इस बेमुरव्वत पे कहाँ
अश्कों का असर हुआ करता है
हर मोड़ पे मुहब्बत को
मंजिल करीब लगती है
हर मील के पत्थर पे
इक फरेब हुआ करता है
कहकहे लगता है
दिल-ऐ-नादाँ की नादानी पर
हर अधूरे अरमान की
ये तकदीर हुआ करता है
कितनी सिसकियों से
ये रूबरू होता है मगर
पत्थर तो पत्थर है…
Added by Sushil Sarna on August 10, 2015 at 8:26pm — 12 Comments
कर सत्य को अंगीकार ....
आवरण से श्रृंगार किया
माया से किया प्यार
अन्तकाल संसार ने
सब कुछ लिया उतार
अद्भुत प्रकृति है जीव की
ये भटके बारम्बार
लौ लगाये न ईश से
पगला बिलखे सौ सौ बार
शीश झुकाये मन्दिर में
हो जैसे कोई मज़बूरी
अगरबत्ती भी यूँ जलाए
जैसे ईश पे करे उपकार
कपट कुण्ड में स्नान करे
और विकृत रखे विचार
कैसे मिलेगा जीव तुझे
उस पालनहार का प्यार
सत्य धर्म है,सत्य कर्म है
सत्य जीवन आधार
ईश स्वयं…
Added by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 1:13pm — 8 Comments
चढ़ावा - लघुकथा
''दादू .... !''
''हूँ .... !''
''हम मंदिर में पैसे क्यों चढ़ाते हैं … ?''
''बेटे , हर आदमी को अपनी नेक कमाई से कुछ न कुछ अपनी श्रद्धानुसार प्रभु के चरणों में अर्पण करना चाहिए। ''
''लेकिन दादू , आप तो कहते हैं कि हमारे पास जो भी है तो प्रभु का दिया है … . । ''
''हाँ तो … । ''
''तो जब सब कुछ प्रभु ही देते हैं तो हम फिर उन्हें पैसे क्यों चढ़ाते हैं ?''
दादू निरुत्तर हो पोते का मुख देखने लगे।
सुशील सरना
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 5, 2015 at 3:54pm — 12 Comments
कुछ क्षणिकाएँ :
१.
कितना अद्भुत है
ये जीवन
कदम दर कदम
अग्रसर होता है
एक अज्ञात
संपूर्णता की तलाश में
और ब्रह्मलीन हो जाता है
एक अपूर्णता के साथ
२.
छुपाती रही
जिसकी मधु स्मृति को
अपने अंतस तल की गहराई में
वो खारी स्याही से
कपोल पर ठहर
इक बूँद में
विरह व्यथा का
सागर लिख गया
३.
मैंने सौंप दिया
सर्वस्व अपना
जिसे अपना मान
छल गया वही
पावन प्रीत को …
Added by Sushil Sarna on August 4, 2015 at 1:30pm — 8 Comments
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