२१२२ २१२२ २१२
जंग दौलत की छिड़ी है रार क्या
आदमी की आज है दरकार क्या १
जालसाजी के घनेरे मेघ है
हो गया जीवन सभी बेकार क्या२
लुट रही है राह में हर नार क्यों
झुक रहा है शर्म से संसार क्या ३
छल रहे है दोस्ती की आड़ में
अब भरोसे का नहीं किरदार क्या ४
गुम हुआ साया भी अपना छोड़कर
हो रहा जीना भी अब दुश्वार क्या ५
धुंध आँखों से छटी जब प्रेम की
घात अपनों का दिखा गद्दार क्या६
इन…
ContinueAdded by shashi purwar on August 18, 2014 at 9:30pm — 8 Comments
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