२२१/२१२१/२२२/१२१२
फेंका जो होता आप ने पत्थर सधा हुआ
दिखता जरूर भेड़िया घायल गिरा हुआ।१।
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हर बार अपनी चाल जो होती नहीं सफल
है दुश्मनों से आज भी कोई मिला हुआ।२।
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स्वाधीन हो के भी कहाँ स्वाधीन हम हुए
फिरता न यूँ ही हाथ ले फदली कटा हुआ।३।
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रोटी मिली न मुझको न तुझको खुशी मिली
ऐसी गजल से बोल तो किस का भला हुआ।४।
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कल तक जो हँसता खेल के चिंगारियों से था
रोता है आज देख के निज घर जला हुआ।५।
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मैं जुगनुओं को मुँह…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2020 at 7:17pm — 4 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
शीशे को भी रखने वाले पत्थर लोगों नहीं रहे
यौवन के अब पहले जैसे तेवर लोगों नहीं रहे।१।
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ढूँढा करते हैं गुलदस्ते तितली भौंरे आज यहाँ
काँटों से बिँध फूल को आते मधुकर लोगों नहीं रहे।२।
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केवल आँच जला देती है सावन में भी देखो अब
ज्लाला से लड़ बचने वाले वो घर लोगों नहीं रहे।३।
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एक तो पहले से मुश्किल थी ये कोरोना क्या आया
रोज कमा खाने के भी अब अवसर लोगों नहीं रहे।४।
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2020 at 9:00am — 10 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
किसी की आँख का काँटा न तू होना गँवारा कर
किसी की आँख का तारा स्वयम् को हाँ बनाया कर।१।
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ये जननी जन्म भूमि तो सभी को स्वर्ग से भी बढ़
गढ़ी हो नाल जिस भूमी उसे हर पल सँवारा कर।२।
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उतर जाये तो जीवन ये रहे लायक न जीने के
उतरने दे न पानी निज न औरों का उतारा कर।३।
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जो अपनी नींद सोता हो जो अपनी नींद जगता हो
उसी सा होने की जिद रख उसी को बस सराहा कर।४।
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हँसी की बात लगती पर हँसी में मत उड़ा देना
अगर दाड़ी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2020 at 4:01pm — 3 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2020 at 11:05am — 14 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
पूछो न आप गाँव को क्या क्या हैं डर दिये
खेती को मार खेत जो सेजों से भर दिये।१।
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पाटे गये वो ताल भी पुरखों की देन जो
रख के विकास नाम ये अन्धे नगर दिये।२।
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आँगन वो चौड़ा खेत के छूटे रहट वहीं
दड़बों से आगे कुछ नहीं जितने भी घर दिये।३।
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वो भी धरौंदे तोड़ के हम से ही थे गहे
कहकर सहारा आप ने तिनके अगर दिये।४।
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कोई चमन के फूल को पत्थर बना रहा
कोई था जिसने शूल भी फूलों से कर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2020 at 6:30am — 5 Comments
अपना क्या है इस दुनिया में है जो कुछ भी धरती का
आग, हवा ये, फूल, समन्दर, चिड़िया, पानी धरती का।१।
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क्या सुन्दरवन क्या आमेजन कोलोराडो क्या गौमुख
ये हरियाली, रेत के टीले, सोना, चाँदी धरती का।२।
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हिमशिखरों की चमक चाँदनी बारामूदा का जादू
पीली नदिया, हरा समन्दर ताजा बासी धरती का।३।
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बाँध न गठरी लूट धरा को अपना माल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 9, 2020 at 4:20am — 7 Comments
जमाने की नजर में यूँ बताओ कौन अच्छा है
भले ही माँ पिता के वास्ते हर लाल बच्चा है।१।
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हदों में झूठ बँध पाता नहीं है आज भी लोगों
जुटाली भीड़ जिसने बढ़ लगे वो खूब सच्चा है।२।
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लगे बासी भरा जो भोर को घर में जिन्हें सन्ध्या
मगर बोतल में जो पानी कहा करते वो ताजा है।३।
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महज चाहत का रिस्ता है यहाँ हर चीज से मन का
सुना है नेह से मिलता …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 6, 2020 at 5:11pm — 2 Comments
अछूतों से भी मत करना कभी व्यवहार अछूतों सा
समय तुम को न इस से दे कहीं दुत्कार अछूतों सा।१।
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कहोगे भार जब उनको तुम्हें कोसेगा अन्तस नित
कहोगे तब स्वयम् को ही यहाँ पर भार अछूतों सा।२।
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करोना वैसा ही लाया करें व्यवहार जैसा हम
उसी का भोगता अब फल लगे सन्सार अछूतों सा।३।
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पता पाओगे पीड़ा का उन्हें जो नित्य डसती है
कहीं पाओगे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2020 at 6:30am — 10 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
रात से बढ़कर दिन में जलना कितना मुश्किल होता है
सच कहता हूँ निज को छलना कितना मुश्किल होता है।१।
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जब रिश्तों के बीच में ठण्डक हद से बढ़कर पसरी हो
धूप से बढ़कर छाँव में चलना कितना मुश्किल होता है।२।
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पेड़ हरे में जो भी मुश्किल सच में हल हो जाती पर
ठूँठ बने तो धार में गलना कितना मुश्किल होता है।३।
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साथ समय तो लक्ष्य सरल पर समय हठीला होने से
सच में धारा संग भी चलना कितना मुश्किल होता है।४।
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 4, 2020 at 5:00pm — 8 Comments
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