For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मनोज अहसास's Blog – September 2019 Archive (8)

अहसास की ग़ज़ल

12122×4

हमीं थे सच के करीब दिलबर यकीन तुमको दिलायें कैसे

नज़र से तुमने गिरा दिया जब नज़र में तुमको बसायें कैसे

मिज़ाज़ से तो गई नहीं है तुम्हारी यादें तुम्हारी बातें

जमीं से पौधा उखड़ गया पर हवा से खुशबू मिटायें कैसे

जो पकड़े बैठे हैं जिंदगी को वो अपने साये से डर गए हैं

तमाम दौलत कमा चुके हैं सुकून दिल का कमायें कैसे

ग़ज़ल की उंगली पकड़ के चलना सभी के गम में उदास होना

यही तो शाइर की जिंदगी है हम इसको नेमत बतायें…

Continue

Added by मनोज अहसास on September 27, 2019 at 2:36am — 6 Comments

अहसास की ग़ज़ल

2×15

एक ताज़ा ग़ज़ल

वो कहते हैं चाहत कब थी वो इक झूठा सपना था

मुझको भी वो भूलना होगा जो कुछ मैंने सोचा था

इससे बेहतर खुद को समझाने की बात नहीं कोई

जो कुछ किस्मत में लिक्खा था वो तो आखिर होना था

कुछ सालों से मैंने खुद को हँसते हुए नहीं देखा

कुछ सालों मैंने तेरी झूठी मुस्कान को देखा था

सोच समझ वाले लोगों की कुछ भी समझ नहीं आया

जाने कौन सा योग था जो मेरी कुंडली में बैठा था

तरकीबें नाकाम रही सब दुख से तुझे…

Continue

Added by मनोज अहसास on September 26, 2019 at 12:48am — 2 Comments

अहसास की ग़ज़ल

12122×4

अंधेरी घाटी में रोशनी का हसीन चश्मा जरूर होगा

हमें खबर तो नहीं है फिर भी तलब का रस्ता जरूर होगा

पुराने शब्दों की बारिशों में सकून अपना तलाश कर ले

जो उसके दिल में कहीं नहीं था वो खत में लिक्खा जरूर होगा

तेरे कदम यूं जमे हुए हैं, तुझे हिलाना सरल नहीं है

हमारी आहों से फिर भी इक दिन तेरा तमाशा जरूर होगा

चरागों का दम चुराने वाले क्या तुझको इतनी समझ नहीं है,

बुझेगी सूरज की जिंदगी जब, इन्हें जलाना जरूर होगा…

Continue

Added by मनोज अहसास on September 24, 2019 at 12:50am — 4 Comments

एक ग़ज़ल मनोज अहसास इस्लाह के लिए

11212×4

मुझे पीसते हैं जो हर घड़ी,न वो दर्द मुझसे लिखे गए

किसी बेजुबान ख्याल में कई शेर यूं ही कहे गए

भरी रात में तेरी याद के जो चिराग बुझ के महकते हैं,

उन्हें जिंदा रखने की चाह में कई जाम हमसे पिये गये

जिसे हम समझते थे अपना घर वो जहान हमसे था बेखबर

कई रास्ते तो मकान के मुझे तोड़कर भी बुने गए

मुझे ढूंढ लाने की चाह में ,मेरे दोस्तों के वो मशवरे

मेरी जिंदगी का अज़ाब थे सो इसीलिए न सुने गए

कहीं सर…

Continue

Added by मनोज अहसास on September 12, 2019 at 11:33pm — 3 Comments

एक ग़ज़ल मनोज अहसास इस्लाह के लिए

2122×3+212

जिंदगी ने सब दिया पर चैन का बिस्तर नहीं

जिस जगह सर को न पटका ऐसा कोई दर नहीं

हार कर मजबूर होकर आज ये कहना पड़ा

इश्क इक ऐसा परिंदा है कि जिसका घर नहीं

मुझको मंजिल से जुदा कर तूने साबित कर दिया

मैं तेरे रस्ते पे हूं पर तू मेरा रहबर नहीं

इस जहां में बस वही आराम से जीता मिला

जिसको अपनी ही गरज है आसमां का डर नहीं

आंखों से ख्वाबों के संग तेरा भरोसा भी गया

मुझको जीना तो पड़ेगा पर तेरा होकर…

Continue

Added by मनोज अहसास on September 10, 2019 at 10:17pm — 4 Comments

एक ग़ज़ल मनोज अहसास इस्लाह के लिए

2×15

इस दुनिया में एक तमाशा जाने कितनी बार हुआ

वो दरिया में डूब गया जो तैर समंदर पार हुआ

अच्छे दिन की चाहत वालों ऐसी भी क्या बेताबी

चार नियम बनते ही बोले जीना ही दुश्वार हुआ

एक पहाड़ी पर शीशे के घर में बैठा बाजीगर

नाच नचाकर देख रहा है कौन बड़ा फनकार हुआ

तुमने अपने मातम पर भी खर्च किया मोटा पैसा

और किसी निर्धन के घर में मुश्किल से त्यौहार हुआ

चार कदम की दूरी पर थी मंजिल…

Continue

Added by मनोज अहसास on September 8, 2019 at 10:40pm — 1 Comment

एक ग़ज़ल मनोज अहसास इस्लाह के लिए

2×15

सबका इक दिन आता है दिन मेरा भी आ जायेगा

जीवन पूरा होते-होते जीना भी आ जायेगा

आहें भरना सीख गए तो लिखना भी आ जायेगा

इन शब्दों में इक दिन उसका चेहरा भी आ जायेगा

इसको मन की लाचारी भी कहते हैं दुनिया वाले

खुद से बातें करते करते कहना भी आ जायेगा

आलू पर मिट्टी लिपटी थी ,मिट्टी से जब आया था

दुनिया में कुछ रोज रहेगा छिलका भी आ जायेगा

जिसकी चाहत में इतने दिन आस लगाकर जिंदा थे

मिल…

Continue

Added by मनोज अहसास on September 6, 2019 at 11:41pm — 2 Comments

एक ग़ज़ल मनोज अहसास इस्लाह के लिए

2×15

मेरे मन की लाचारी में जल जायें ना मेरे हाथ

मुझको फिर से पावन कर दे तू हाथों में लेके हाथ

मम्मी,पापा,बहना,भाई,बीवी,बच्चे और साथी

काम-समय अपने हाथों में दिखते मुझको सबके हाथ

सुन लेने की आदत को कमजोरी समझा जाता है

सच्चे साबित हो जाते हैं पल-पल हाथ नचाते हाथ

सच कहने की चाहत तो है लेकिन इन झूठों के बीच

कैसे सबको बतलाऊं मैं मेरे भी हैं काले हाथ

अपना मानना,अपना कहना,अपना होना बात कई

लेकिन…

Continue

Added by मनोज अहसास on September 2, 2019 at 11:10pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
16 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service