1222 1222 1222 1222 तरही ग़ज़ल
अगर बेटे की भाई से अदावत और हो जाती
मेरे अपने ही घर में इक बगावत और हो जाती
जहाँ खामोशी से मेरी जसामत और हो जाती
वहीं कुछ कहने से मेरे मुसाफत और हो जाती
हिमानी के शिखर पर डाल गलबहियाँ पलक मींचे
युगल प्रेमी यही सोचे क़यामत और हो जाती
सुलगती साँसे जलता तन पिला दो मय ये आँखों की
जहाँ सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती
इधर बेटा उधर भाई पिता करते तो क्या करते
अगर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 28, 2016 at 5:07pm — 8 Comments
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