(गीतिका छंद आधारित मुक्तक)
हो बधाई बंधु अग्रज, याद अब प्रतिदिन यहाँ.
जन्मदिन शुभ आपका मिल, कर मनाते जन यहाँ.
आप मानक थे यहाँ इं-,जीनियर के रूप में.
विश्वेश्वरैया मोक्षगुंडम, सर नमन वंदन यहाँ..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 15, 2012 at 1:52pm — 7 Comments
हिन्दी अपनी जान है, हिन्दी है पहचान.
देश हमारा हिन्दवी, प्यारा हिन्दुस्तान.
प्यारा हिन्दुस्तान, जहाँ भाषा का मेला.
सबको दें सम्मान, करें नहिं कोई खेला.
'अम्बरीष' हो गर्व, देख माथे की बिंदी.
दुनिया भर में आज, छा रही अपनी हिन्दी..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 14, 2012 at 9:30am — 16 Comments
इन्साफ जो मिल जाय तो दावत की बात कर
मुंसिफ के सामने न रियायत की बात कर
तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं
ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर
गर खैर चाहता है तो बच्चों को भी पढ़ा
आलिम के सामने न जहालत की बात कर
अपने ही छोड़ देते तो गैरों से क्या गिला
सब हैं यहाँ ज़हीन सलामत की बात कर
'अम्बर' भी आज प्यार की धरती पे आ बसा
जुल्मो सितम को भूल के जन्नत की बात कर
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 10:30am — 26 Comments
बिरादरी में ऊँची नाक रखने वाले, दौलतमंद, पर स्वभावतः अत्यधिक कंजूस, सुलेमान भाई ने अपने प्लाट पर एक घर बनाने की ठानी| मौका देखकर इस कार्य हेतु उन्होंने, एक परिचित के यहाँ सेवा दे रहे आर्कीटेक्ट से बात की| आर्कीटेक्ट नें उनके परिचि त का ख़याल करते हुए, बतौर एडवांस, जब पन्द्रह हजार रूपया जमा कराने की बात कही, तो सुलेमान भाई अकस्मात ही भड़क गए, और बोले, "मैं पूरे काम के,…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 8:30am — 20 Comments
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