घर में शामो सहर पड़ी बेटी
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Sushil Thakur on September 9, 2013 at 12:00am — 11 Comments
मेरी नज़रों में तो वो खरगोश ही था मोतवर
जिसने बाज़ी हारकर कछुए को कर डाला अमर
यूं हुई पलकों से रुखसत नींद कि लौटी नहीं
लाख ही उसको बुलाते रह गए हम रातभर
इश्क़ का जब-जब हुआ दिल हद से ज़्यादा बेक़रार
हुस्न ने तब- तब कहा कि और थोड़ा सब्र कर
ऐ क़लमकारो वो अह्सासे मुहब्बत भी लिखो
माँ की छाती मुंह में जब लेता है बच्चा दौड़कर
क़ायदे क़ानून के फंदे हैं बस मेरे लिए
उसने तो गठरी बनाकर रख दिया है ताक…
Added by Sushil Thakur on September 7, 2013 at 2:30pm — 16 Comments
रोज़ा, नमाज़, हज औ तिलावत न कर सका
अपने वजूद की मैं हिफाज़त न कर सका
दैरो हरम में आ के तो सजदा किया ज़रूर
लेकिन कभी मैं दिल से इबादत न कर सका
बिकता रहा ज़मीर भी कौड़ी के भाव में
मैं चाहकर भी इसकी हिफ़ाज़त न कर सका
तेरे क़दम भी रुक गए उल्फत की राह में
मै भी अकेला घर से बग़ावत न कर सका
तेरे बदन में देखकर पाकीज़गी की आग
कोई भी शख्स छूने की ज़ुर्रत न कर सका
मैख़ाने में गुज़ार दी 'साहिल' ने…
ContinueAdded by Sushil Thakur on September 2, 2013 at 6:30pm — 18 Comments
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