1212 1122 1212 22 /112
तेरे खतों में रहा यूँ तो रंगो बू शामिल
मगर मज़ा ही कहाँ है अगर न तू शामिल
मुझे अधूरी किसी चीज़ की नहीं हाजत
मेरी हयात में हो जा तू हू ब हू शामिल
बिन आरज़ू भी कभी ज़िन्दगी कटी है कहीं
तू कर ले ज़िन्दगी में मेरी आरजू शामिल
किसी की याद भी तनहाइयों का दरमाँ है
किसी की याद की कर ले तू ज़ुस्तजू शामिल
झिझक नहीं , न जमाने…
Added by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 5:00am — 19 Comments
2122 2122 212
खुशनुमाँ से अवसरों के वास्ते
आसमाँ तो हो परों के वास्ते
मै तो आईना लिये फिरता हूँ अब
आइनों से पत्थरों के वास्ते
अब तो दीवारें गिरायें यार हम
गिर रहे हैं उन घरों के वास्ते
थोड़ी अकड़न भी अता करना ख़ुदा
बे सबब झुकते सरों के वास्ते
कुछ बहाने और हैं, ले जाइये
आदतन से कायरों के वास्ते
मैं हक़ीकत बाँध के लाया हूँ आज
कुछ छिपे अंदर डरों के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 23, 2015 at 6:49am — 15 Comments
2122 2122 2122
एक दिन आ कर तुम्हें भी हम हँसायें
यदि हमारे बहते आँसू मान जायें
क्यों समय केवल उदासी बांटता है ?
क्या समय के पास बस हैं वेदनायें
जानकारी ठीक है ,पर ये भी सच है
ज्ञान की अति खा रही है भावनायें
इस तरफ है पेट की ऐंठन सदी से
उस तरफ़ है भूख पर होतीं सभायें
बात में बारूद शामिल है उधर की
हम कबूतर शांति के कैसे उड़ायें ?
अब धरा को छू रहा है सर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 15, 2015 at 9:33am — 43 Comments
2122 1212 112/22
ज़ख़्म सूखे निशान छोड़ गये
जैसे अपना बयान छोड़ गये
लौट के यूँ गये मेरे दिल से
मानो ख़ाली मकान छोड़ गये
सारी खुश्बू हवायें ले के गईं
ये भी सच है कि भान छोड़ गये
राग खुशियों के छिन्न भिन्न किये
मित्र, ग़मगीन तान छोड़ गये
उड़ गये जब परिंदे बाग़ों से
पीछे सब सून सान छोड़ गये
हाले दिल क्या बयान कर पाते ?
हम से कुछ बे ज़ुबान छोड़ गये
खुद चढ़ाई चढ़े…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 3, 2015 at 10:54am — 26 Comments
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