चाल चला जब हंस की, बगुला बहुत सयान
बगुला खाया मात तब, खोया अपना मान
खोया अपना मान, इस्तीफे की है मांग
बात बड़ेन की मान, है टूटी छोटी टांग
कह सागर कविराय, नेता इनका है बाल
इन्हीं को अब पड़ी, है उलटी इनकी चाल
आशीष ( सागर सुमन )
मौलिम एवं अप्रकाशित
Added by Ashish Srivastava on September 27, 2013 at 11:00pm — 10 Comments
टेरत टेरत जुग भया, सुधि नहि लीन्ही मोहि
Added by Ashish Srivastava on September 27, 2013 at 1:22pm — 9 Comments
मोहि दुखियारी आँख को,सुक्ख मिलत है नाहि
Added by Ashish Srivastava on September 26, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
मदिरा मत समझो मुझे , नहीं नशे की चीज़
एक दीवानी प्रेम की , प्रेम से जाओ भीज
Added by Ashish Srivastava on September 16, 2013 at 1:00pm — 5 Comments
प्रेम कि बांसुरि बाजि रही पिय के मन को अकुलाय रही
भोर समान खिलै मुखि चन्द चकोर पिया को बुलाय रही
रीझि गया मन लाजि गया तन सांझ क़ि बात सुनाय रही
रीति क़ि प्रीति बनी बिगरी पर प्रीति की रीति बताय रही
आशीष श्रीवास्तव ( सागर सुमन )
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Ashish Srivastava on September 5, 2013 at 10:00pm — 8 Comments
मौलिक एवं अप्रकाशित
तुम में ही लीन प्रान मेरे , प्राणों में मेरे प्रियवर हो
इसलिये विलग होकर भी तुम, मुझमे ही सदा निवासित हो
अलके पलकें भी रो रोकर , दो चार अश्रु ही चढ़ा रही
मेरे भगवन मेरे प्रियतम, बस राह धूल ही हटा रही
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खुद के अन्दर तुम तक जाना, चरणोदक पीकर जी जाना
इस धूल धूसरित मन से ही , अपने प्रियतम में लग जाना
आकुल व्याकुल इस साधक पर, कुछ प्रेम सुधा बरसा…
Added by Ashish Srivastava on September 4, 2013 at 8:00pm — 21 Comments
उन्हें चस्का बहुत था बेरुखी हमसे भी करने का
Added by Ashish Srivastava on September 2, 2013 at 9:55pm — 16 Comments
बीमारी के अर्थ दो , नहि केवल ये रोग
इक तो केवल रोग है, दूसर केवल योग
दूसर केवल योग, बहूत है कठिन समझना
प्रेम रोग इक भाव , इसे है सरल समझना
कह सागर सुमनाय,कहो अब कुशल तिहारी
रोग योग दो अर्थ , प्रेम कहा या बिमारी
Added by Ashish Srivastava on September 2, 2013 at 8:30pm — 12 Comments
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