बहार आने पे चमन में फूल खिलते हैं
जब तलक महक औ रंगे जवानी हो
संग चलने दिल मिलने को मचलते हैं
छाती है जब खिजां गुलशने ए बहारां में
पराये तो क्या अपने भी रंग बदलते हैं
था अकेला चला काफिला बढ़ता गया
मकसद एक कभी जुदा जुदा
जमाने का भी अब बदला चलन यारों
मिल गयी उन्हें मंजिले मक़सूद
मील के पत्थर के मानिंद मैं तनहा रह गया
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 17, 2012 at 7:00pm — 4 Comments
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