साफ़ नीला आसमान
सफेद रूई सा हल्का
बिलकुल हल्का ,
हल्का वाला सफेद बादल
कभी बहुत भारी सा हो जाता है
वक्त रेशम सी ,
रेशम सी मुलायम वक्त
फिसलती हुई ,सरकती हुई
रेशमी सा एहसास देती हुई गुजर जाती है
वक्त के वजूद में
जाने क्यों पहिए होते है
जो दिखाई नहीं देते पर ब्रेक नहीं होते है
शायद ब्रेक भी रहें हो कभी लेकिन
आजकल वक्त नहीं रूकता
यहाँ बाजार में बहुत भीड़ है
यह भीड़ कभी खत्म नहीं…
ContinueAdded by kanta roy on October 31, 2015 at 10:09am — 6 Comments
Added by kanta roy on October 28, 2015 at 8:36pm — 18 Comments
वे दिन भी भले थे
ये साँझ भी है भली
Added by kanta roy on October 21, 2015 at 10:00pm — 14 Comments
" ये क्या सुना मैने , तुम शादी तोड़ रही हो ? "
" सही सुना तुमने । मैने सोचा था कि ये शादी मुझे खुशी देगी । "
" हाँ ,देनी ही चाहिए थी ,तुमने घरवालों के मर्ज़ी के खिलाफ़ , अपने पसंद से जो की थी ! "
" उन दिनों हम एक दुसरे के लिए खास थे , लेकिन आज ....! "
" उन दिनों से ... ! , क्या मतलब है तुम्हारा , और आज क्या है ? "
" उनका सॉफ्स्टिकेटिड न होना , अर्थिनेस और सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी बहुत खलता है। आज हम दोनों एक दुसरे के लिये बेहद आम है । "
" ऐसा क्यों ? "…
ContinueAdded by kanta roy on October 21, 2015 at 4:00pm — 9 Comments
Added by kanta roy on October 17, 2015 at 2:33pm — 9 Comments
बाजार में बहुत भीड़ थी आज । क्यों ना हो ,नवरात्रि का पहला दिन, लोग सुबह से ही स्नान ध्यान कर पूजा-पाठ की तैयारी में लगे हुए थे ।
मै भी स्नान कर ,कोरी साड़ी पहन, नंगे पैर माता रानी को लिवाने आई थी । फुटपाथ के उसी निश्चित कोने में , माता रानी विविध रूपों में मुर्ति रूप लिये दुकानों में सज रही थी । कहीं तीन मुंह वाली शेर पर सवार थी , कहीं अपने अष्टभुजा में सम्पूर्ण शस्त्रों के साथ , तो कहीं दस भुजा लेकर महिषासुर का वध करती हुई । काली ,चामुण्डा सबके दर्शन हुए लेकिन मै लेकर…
Added by kanta roy on October 13, 2015 at 8:00pm — 4 Comments
Added by kanta roy on October 11, 2015 at 9:16am — 2 Comments
Added by kanta roy on October 9, 2015 at 8:50am — 6 Comments
Added by kanta roy on October 6, 2015 at 4:00pm — 12 Comments
" तुम्हारे नम्बर तो मुझसे कम आये थे ना ! फिर ये एडमिशन .... ? "
" रहने दो अब ये सब पूछना - पूछाना ,लो पहले मिठाई खाओ , आखिर तुम्हारा जिगरी दोस्त तो डाक्टर बन रहा है ना ! "
" मतलब ? "
" अरे नहीं समझे अब तक क्या ! वही पुरानी शिक्षा नीति की घटिया चालबाज़ी , डोनेशन ! और क्या ! "
" लेकिन तुम तो कहते थे डोनेशन देकर नहीं पढोगे । अपने कोशिशों की नैया पर सवार रहोगे ! सो , उसका क्या ? "
" कोशिशों की नैया ! हा हा हा हा ....वो सब स्कूली बातें थी ।…
Added by kanta roy on October 1, 2015 at 7:30pm — 8 Comments
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