२१२२ २१२२ २१२२ २१२
मेरी बगिया खिल उठी मौसम निराला हो गया
आ गई बेटी मेरे घर में उजाला हो गया
दीप खुशियों के जले शुभ शंख मानो बज उठे
देखिये साहिब मेरा तो घर शिवाला हो गया
लहलहाई यूँ फसल खेतों की मेरी देखिये
सोने चाँदी से मढ़ा इक इक निवाला हो गया
बिन सुरा सागर के जैसे खाली था मेरा वजूद
आते ही उसके लबालब ये पियाला हो गया
पढ़ते पढ़ते रात दिन आँखें मेरी थकती नहीं
उसका चेह्रा खूबसूरत इक…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 23, 2016 at 12:55pm — 20 Comments
युद्ध थम चुका था जश्न भी मना चुके थे पनडुब्बी ,हवाई जहाज ,टैंक बहुत खुश दिखाई दे रहे थे तीनों का सीना गर्व से फूला था| युद्ध की घटनाओं का तीनों ही बढ़ चढ़ कर जिक्र कर रहे थे न जाने कहाँ से वार्तालाप में अचानक मोड़ आया कि एक के बाद एक तीनों ही अपनी अपनी सफलताओं का बखान करने लगे |
टैंक बोला- “सबसे आगे मैं था कुचल डाला सबको मेरा तो डीलडौल और रौब देख कर ही दुश्मन की घिघ्घी बंध गई थी”|
“अरे तुझे क्या पता तेरे ऊपर मैं दुश्मनों को कवर कर रहा था वरना मेरे सामने तेरी क्या…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 16, 2016 at 6:00pm — 10 Comments
दोहा गीत
आज़ादी की राह में ,शत शत वो बलिदान|
याद कहो कितना रहा ,बोलो हिन्दुस्तान||
सावरकर की यातना,देखी थी प्रत्यक्ष|
अंडमान की जेल में,काँपे पीपल वृक्ष||
संग्रामी आक्रोश में ,कितने बुझे चिराग|
कितनी टूटी चूड़ियाँ,कितने मिटे सुहाग||
कितनी दी कुर्बानियाँ,तब पाया सम्मान|
याद कहो कितना रहा ,बोलो हिन्दुस्तान||
रहे सदा जाँ बाज वो,हर सुख से महरूम|
झूल गये जो जान पर,उन फंदों को चूम||
नेहरू गाँधी…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 9, 2016 at 8:44pm — 11 Comments
2122 2122 2122 212
इक मुहब्बत का महल कब चुपके चुपके ढह गया
बिन किये आवाज सब आँखों का काजल कह गया
अनमनी सी वो अकेली रह गई किश्ती खड़ी
पाँव के नीचे से ही सारा समन्दर बह गया
वो खुदा भी उस फ़लक से देख कर हैरान है
आइना ये पत्थरों की मार कैसे सह गया
ठोकरों ने ही तराशे वो पशेमाँ पंख फिर
ताकते परवाज़ से पीछे गुज़शता रह गया
फूल से भी जो हथेली सुर्ख होती थीं कभी
उस हथेली में पिघल कर आज सूरज बह…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 7, 2016 at 7:41pm — 18 Comments
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