नाव है, पतवार नहीं
भाव है, पर शब्द नहीं
शब्द साधे पर,
अभिव्यक्ति का
सलीका नहीं |
छंद का ज्ञान कर,
शिल्प को साध कर
कविता गढ़ दी
बार बार पढ़कर
पाया,
कविता में वह-
मधुर तान नहीं |
तब, कविता लिखा
कागद फाड़कर,
डालता रहा-
कूड़ेदान में,
कलम हाथ में पकडे
पकड़कर माथा,
गडा दी आँखे
घूरते कागजो के-
कूड़ेदान में |
फिर आहिस्ता से
सिर उठाया-
आसमान की…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 27, 2013 at 10:00pm — 14 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2013 at 10:00am — 8 Comments
लोहा ले तलवार से, तभी कलम की शान
जनता करती याद है, बढे कलम का मान |
बढे कलम का मान, जुल्म पर खुलकर बोले
मसी छोड़ दे छाप, न्यायिक तुला पर तोले
रही धर्म के साथ, उसी ने मन को मोहा
काँपे कभी न हाथ, झूठ से जब ले लोहा||
(मौलिक व अप्रकाशित )
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 1, 2013 at 8:30pm — 9 Comments
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