चन्द अश्आर मेरे अश्क़ से बहकर उतरे।
जो पसीने में हुए तर, वही बेहतर उतरे।
तेरी यादों के यूँ तूफ़ां हैं दिलों पे क़ाबिज़,
जैसे बादल कोई पर्बत पे घुमड़कर उतरे।
स्याह रातों में तेरा ऐसे दमकता था बदन,
जिसतरह चाँद पिघलकर किसी छत पर उतरे।
मैं तुझे प्यार करूँ, और बहुत प्यार करूँ,
ऐसे जज़्बात मेरे दिल में बराबर उतरे।
ऐसी ज़ुल्मत…
ContinueAdded by Balram Dhakar on October 30, 2018 at 11:47pm — 20 Comments
1212, 1122, 1212, 22
अजीब बात है, दुश्मन से यार होने तक,
वो मेरे साथ था, मेरा शिकार होने तक।
उबलते खौलते सागर से पार होने तक,
ख़ुदा को भूल न पाए ख़ुमार होने तक।
हमें भी कम न थीं ख़ुशफ़हमियां मुहब्बत में,
हमारा दर्द से अव्वल क़रार होने तक।
तुम्हारा ज़ुल्म बढ़ेगा, हमें ख़बर है ये,
तुम्हारे हुस्न का अगला शिकार…
Added by Balram Dhakar on October 29, 2018 at 1:40pm — 20 Comments
इरादा तो था मुहर्रम को ईद कर देंगे।
तरीक़ा उनका था जैसे शहीद कर देंगे।
वो एक बार सही महफ़िलों में आएं तो,
उन्हें हम अपनी ग़ज़ल का मुरीद कर देंगे।
उम्मीद बन के जो इस ज़िन्दगी में शामिल हो,
तो कैसे तुमको भला नाउम्मीद कर देंगे।
जो तुमने ख़्वाब भी देखे बराबरी के तो,
वो ऐसे ख़्वाब की मिट्टी…
Added by Balram Dhakar on October 27, 2018 at 8:18pm — 20 Comments
2122 2122 2122 212
हर दुआ पर आपके आमीन कह देने के बाद
चींटियाँ उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद
आपने तो ख़ून का भी दाम दुगना कर दिया
यूँ लहू का ज़ायका नमकीन कह देने के बाद
फिर अदालत ने भी ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
मसअले को वाक़ई संगीन कह देने के बाद
ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का
बिछ गईं दस्तार सब कालीन कह देने के…
Added by Balram Dhakar on October 24, 2018 at 12:00am — 20 Comments
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