!!! भंवर में डूब गयी नाव !!!
1212 1122 1212 22
उधार आज नहीं, कल नकद बताने से।
भंवर में डूब गयी नाव, भाव खाने से ।।
जवां-जवां है हंसीं है सुहाग रातों सी।
यहां गुलाब - चमेली महक जताने से।।
बड़े उदास सितारें जमीं पे टूट गिरे।
हंसी खिली कि चमेली मिली दीवाने से।।
कठोर रात सितारों पे फबितयां कसती।
हुजूर आप यहां, चांद डगमगाने से।।
शुभागमन है यहां भोर लालिमा जैसी।
सुगन्ध फैल गयी नम हवा बहाने…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 30, 2013 at 8:51pm — 12 Comments
हार्इकू (सत्ता ही भत्ता)
//1//
कन्या कुमारी
फैशन की बीमारी
पार्क घुमा री!
//2//
सुन्दर बेटी
भारतीय संस्कार
फूटती ज्वाला।
//3//
बेटी गहना
जुआरी क्या कहना
नेता आर्इना।
//4//
जय माता दी!
धार्मिक बोलबाला
देश में हिंसा।
//5//
लोक तंत्र क्या?
बलवा-व्यभिचार
जनता उदास।
//6//…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 24, 2013 at 8:30am — 20 Comments
!!! नित धर्म सुग्रन्थ रचे तप से !!!
दुर्मिल सवैया - (आठ सगण-112)
तन श्वेत सुवस्त्र सजे संवरें, शिख केश सुगंध सुतैल लसे।
कटि भाल सुचन्दन लेप रहे, रज केसर मस्तक भान हसे।।
हर कर्म कुकर्म करे निश में, दिन में अबला पर ज्ञान कसे।
नित धर्म सुग्रन्थ रचे तप से, मन से अति नीच सुयोग डसे।।
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 22, 2013 at 6:20pm — 29 Comments
!!! सारांश !!!
बह्र - 2 2 2
कर्म जले।
आंख मले।।
धर्म कहां?
पाप पले।
नर्म गजल,
कण्ठ फले।
राह तेरी ,
रोज छले।
हिम्मत को,
दाद भले।
गर्म हवा,
नीम तले।
जीवन क्या?
हाड़ गले।
आफत में,
बह्र खले।
प्रीत करों,
बन पगले।
विव्हल मन,
शब्द टले।
दृषिट मिली,
सांझ ढले।
गर मुफलिस,
बात…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 9, 2013 at 8:00pm — 34 Comments
!!! हर काम-दिशा रति पावन हो !!!
दुर्मिल सवैया छन्द आठ सगण यथा-112 आठ पुनरावृतित
// 1 //
हर मां जगती तल शीतल सी, नव जीवन दायक है जर* मां।..........*धन अर्थात लक्ष्मी
जर मां सब ध्यान धरे उर में, दर रोशन, बाहर है गर मां।।
गर मां नव दीप जले सुखदा, सुख बांट रहूं सुख को वर मां।
वर मां मुझको शिशु कृष्ण कहो, तम नष्ट करूं वर दे हर मां।।
// 2 //
समिधा सम दुर्गति नष्ट करें, सत पुष्ट करें अति पावन हो।
मन…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 5, 2013 at 11:00am — 27 Comments
!!! काम अनंग समान हुए !!!
दुर्मिल सवैया ... आठ सगण यथा-
112 112 112 112 112 112 112 112
कलिकाल अकाल समाज ग्रसे, मन आकुल दीप पतंग हुए।
नित मानव दंश करे जग को, रति-काम समान दबंग हुए।।
घर बाहर ताक रहे वन में, जिय चोर उफान करे तन में।
अति हीन मलीन विचार धरे, निज मीत सुप्रीति छले छन में।।1
जग घोर अनर्थ अकारण ही, नित रारि-प्रलाप सहालग है।
कब? कौन? कथा सुविचार करे, अपलच्छन कर्म कुमारग है।।
जब धर्म सुनीति डिगे जग में, अवतार तभी जग…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 3, 2013 at 7:30am — 25 Comments
!!! एक 'बापू फिर बुला मां शारदे !!!
बह्र-2122 2122 212
प्यार जीवन में बढ़ा मां शारदे।
दर्द मुफलिस का घटा मां शारदे।।
कंट के रस्ते भी फूलों से लगे,
राम का वनवास गा मां शारदे।
भील-शोषित का यहां उध्दार हो,
एक 'बापू' फिर बुला मां शारदे।
धर्म का रथ आस्मां में जा रहा,
गर्त में धरती उठा मां शारदे।
आततायी रोज बढ़ते जा रहे,
फिर शिवा-राणा बना मां शारदे।
लेखनी का रंग गहरा हो…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 2, 2013 at 10:30pm — 21 Comments
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