(१२२२ १२२२ १२२ )
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नकेलें ग़म के मैं नथुनों में डालूँ
ख़ुदाया मैं भी कुछ खुशियाँ मना लूँ
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मुझे भी तो अता कर चन्द मौक़े
ख़ुदा मैं भी तो जीवन का मज़ा लूँ
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मुहब्बत में तिरी है जीत पक्की
भला फिर किसलिए सिक्का उछालूँ
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हवा जब खुशबुएँ बिखरा रही है
ख़लल क्यों काम में बेकार डालूँ
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पुराने दोस्त क्या कम हैं किसी से…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 12, 2019 at 10:30am — 5 Comments
तूफ़ान जलजलों से नहीं आसमाँ-से हम
फ़ितरत से हैं ज़रूर कुछ अब्र-ए-रवाँ से हम
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कितना लिए है बोझ ज़मीँ इस जहान का
मुमकिन है क्या कभी कि बनें धरती माँ-से हम
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दिल तोड़ के वो कह रहे हैं सब्र कीजिए
सब्र-ओ-क़रार लाएँ तो लाएँ कहाँ से हम
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ये तय नहीं कि प्यार की हासिल हों मंज़िलें
इतना है तय कि जाएँगे अब अपनी जाँ से हम
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कुछ इस तरह से उनकी हुईं मेहरबानियाँ
खाते…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 8, 2019 at 10:30pm — 6 Comments
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