1222 1222 1222 1222
कभी फूलों मे कलियों में, कभी झरनों के पानी में
मुझे महसूस तू होता, हवाओं की रवानी में
कभी बेकस की आहों में ,निगाहे बेबसी में भी
कभी खोजा किया तुझको, किसी गमगीं कहानी में
मुदावा मेरी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 7:30am — 41 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on October 27, 2013 at 6:30pm — 23 Comments
2122 1212 22
ज़र्फ़ अंदर न पास है दिल में
आ गया हूँ ,अदब की महफ़िल में
वक़्त रद्दे अमल का आया तो
तुम रहम खोजते हो क़ातिल में
कुछ तड़प , दर्द और बेचैनी
और क्या खोजते हो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 24, 2013 at 7:00pm — 37 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on October 22, 2013 at 8:00am — 38 Comments
क्या कहूँ , क्या लिखूँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 18, 2013 at 5:44pm — 22 Comments
2122 2122
खुश हुआ खुद को भुला कर
या कहूँ मै तुझको पा कर
खुद को भी मै ने सताया
दोस्ती को आजमा कर
ज़िंदगी का बोझ सर पे
चल रहा हूँ लड़खड़ा कर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 8:30am — 32 Comments
बोलो किसको राम कहूँ मै
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सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !
धृतराष्ट्र से मोह मे अन्धे
अपना अपना बचा रहे है
चौक चौक मे दुर्योधन बन
चौसर द्युत सा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 12, 2013 at 9:30pm — 38 Comments
एक इशारा अधूरा सा
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छू कर
पहन कर
चख कर
देख लेते हैं
कभी खरीदते हैं
कभी यूँ ही लौट आते हैं
सब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 8, 2013 at 8:30pm — 30 Comments
फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 6, 2013 at 9:00am — 37 Comments
2122 1212 22
जुल्म को देख रहगुज़र चुप है
गाँव सारा नगर नगर चुप है
खामुशी चुप ज़ुबां ज़ुबां है चुप
दश्त चुप है शज़र शज़र चुप है
दोस्त चुप चाप दुश्मनी भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 4, 2013 at 8:00am — 39 Comments
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