देख तमाशा
नेता मांगते भीख
लोकतंत्र है ।
जांच परख
आंखो देखी गवाह
जज हो आज ।
खोलता वह
आश्वासनों का बाक्स
सम्हलो जरा
कागजी फूल
चढ़ावा लाया वह
हे जन देव
मदिरा स्नान
गहरा षडयंत्र
बेसुध लोग
चुनोगे कैसे
लड़खड़ाते पांव
ड़ोलते हाथ
होश में ज्ञानी
घर बैठे अज्ञानी
निर्लिप्त भाव
जड़ भरत
देश के बुद्धिजीवी
करे संताप…
Added by रमेश कुमार चौहान on October 27, 2013 at 10:30pm — 11 Comments
दोहा
बज रही बड़ी जोर की, चुनावी शंखनाद ।
निंद उड़े जहां उनकी , तुम दिल रख लो हाथ ।।
सोरठा
लोकतंत्र पर्व एक, उत्सव मनाओं सब मिल ।
बढ़े देश का मान, कुछ ऐसा करें हम मिल ।।
ललित
वोट का चोट करें गंभीर, अपनी शक्ति दिखाओं ।
जो करता हो देश हित काज, उनको तुम जीताओं ।।
गीतिका
देश के मतदाता सुनो, आ रहा चुनाव अभी ।
तुम करना जरूर मतदान, लोकतंत्र बचे तभी ।।
राजनेता भ्रश्ट हों जो, मुॅह बंद…
ContinueAdded by रमेश कुमार चौहान on October 23, 2013 at 10:36pm — 5 Comments
पहेली बूझ !
जगपालक कौन ?
क्यो तू मौन ।
नही सुझता कुछ ?
भूखे हो तुम ??
नही भाई नही तो
बता क्या खाये ?
तुम कहां से पाये ??
लगा अंदाज
क्या बाजार से लाये ?
जरा विचार
कैसे चले व्यापार ?
बाजार पेड़??
कौन देता अनाज ?
लगा अंदाज
हां भाई पेड़ पौधे ।
क्या जवाब है !
खुद उगते पेड़ ?
वे अन्न देते ??
पेड़ उगे भी तो हैं ?
उगे भी पेड़ !
क्या पेट भरते हैं ?
पेट पालक ??
सीधे सीधे नही तो
फिर…
Added by रमेश कुमार चौहान on October 14, 2013 at 4:30pm — 5 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on October 8, 2013 at 8:05pm — 7 Comments
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