तलाश की महफिले तो तन्हाईयाँ मिली !
मुझको वफ़ा के बदले बेवफायियाँ मिली !
जिक्रे चाहत पर सदा लब खामोश ही रहे!
मुझको फिर क्यों इतनी रुश्वायियाँ मिली !
मेरे रकीबो को तो साथ उसका मिला !
मुझको उसकी सिर्फ परछाईयाँ मिली !
मनायेगा शायद मातम मेरी जुदाई का वो !
सुनने को उसके घर पे शहनाईयाँ मिली !
हुस्न की बदौलत फ़लक को पा गया है वो !
मुझको खामोश कब्र सी गहराईयाँ मिली !
उसकी तूफ़ान-ए-…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on October 7, 2013 at 6:36pm — 10 Comments
किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !
जिंदगी मुझे तमाशा बना कर चल पड़ी !
समझ नही आता अर्थ किसी को मेरा !
कैसी ये परिभाषा बना कर चल पड़ी !
पा लूँ अर्श को एक ही छलांग में !
कैसी ये अभिलाषा जगाकर चल पड़ी !
चंद दाद पाकर तसल्ली मिलती नही !
शोहरतों का प्यासा बनाकर चल पड़ी !
बड़ी हस्तियों में हो नाम शामिल मेरा !
मन में ये जिज्ञासा उठाकर चल पड़ी !
किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !
जिंदगी…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on October 6, 2013 at 4:26pm — 11 Comments
ये कैसी है चम् चम् चम् चम् ,
क्यों बहक रहा है मन,
टूटकर घटा से बरसे पानी,
हो गयी है रुत मस्तानी,
चारो और छायी हरियाली ,
जंगल मनाने लगा दिवाली ,
ऐसे बहे ठंडी बयार,
सपनो से हो जाए प्यार,
तन से टपके सुगन्धित पसीना ,
लो आया सावन का मस्त महीना !
तन की बजने लगी सितार ,
आँखें देखे सपने हजार,
अपने प्रियतम का करे इंतज़ार ,
जैसे कोई दुल्हन मस्तानी ,
कैसे खुद को काबू कर पाए ,
कैसे अपने दिल…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:17pm — 13 Comments
Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 4, 2013 at 6:03pm — 5 Comments
१
ना जाओ अभी कि मुलाक़ात अधूरी है !
तेरे – मेरे मिलन की हर बात अधूरी है !
जाने क्यों चल दिए तुम दामन छुडाकर!
शबनमी आँखों से लाज के मोती गिराकर !
पुरसुकूं हुस्न की एक झलक दिखाकर !
अभी नही बुझी आँखों की प्यास अधूरी है !
ना जाओ अभी कि मुलाक़ात अधूरी है !
तेरे – मेरे मिलन की हर बात अधूरी है !
२
काली बदलियों का आँखों में काजल लगाकर !
कांच के पैमाने में मय का जाम थमाकर !
रुखसारो पे…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on October 2, 2013 at 8:07pm — 13 Comments
दीप बन अँधेरी राहो पे जलने लगा हूँ !
धवल चंद्रमा सा चमकने लगा हूँ !
चीर कर सीना निशा का ,
जग के तम को हरने लगा हूँ !
ना दे सहारे को अब कोई बैसाखी !
खुद के पैरो पे जो चलने लगा हूँ !
लडखडाहट का दौर गुजर चुका है !
अब तो मैं सँभलने लगा हूँ !
धो चुका हूँ आँचल के दाग सारे !
फूलों सा अब महकने लगा हूँ !
बंदिशों के पिंजरे तोड़ सारे !
मुक्त परिंदे सा चहकने लगा हूँ !
जला कर इर्ष्या और कपट को !
ज्वालामुखी सा…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on October 2, 2013 at 2:30pm — 17 Comments
आज बरसो के बाद उधर जा निकला जहाँ कभी मेरे प्यार की आखरी कब्र बनी थी , उस जगह न जाने कहाँ से दो पीले रंग के फूल खिले थे . आँखों से गंगा जमुना बहने लगी ! सब कुछ ऐसे याद आने लगा की जैसे कल ही की बात हो! मन पुरानी यादों में खो गया ! आज बहुत ज्यादा थक कर सोया था ये प्राइवेट स्कूल की नौकरी भी ना स्कूल वाले पैसे तो कुछ देते नहीं बस तेल निकलने पे लगे रहते है! ओ बेटा जल्दी उठा जा आज छुट्टी है तो क्या शाम तक सोयेगा जा उठकर देख दरवाजे पे कौन है माँ घर के दुसरे कोने पे कुछ काम कर रही थी , माँ की आवाज़…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on October 1, 2013 at 7:30pm — 2 Comments
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