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Featured Blog Posts – November 2018 Archive (5)

प्रणय-हत्या

प्रणय-हत्या

किसी मूल्यवान "अनन्त" रिश्ते का अन्त

विस्तरित होती एक और नई श्यामल वेदना का

दहकता हुया आशंकाहत आरम्भ

है तुम्हारे लिए शायद घूम-घुमाकर कुछ और "बातें"

या है किसी व्यवसायिक हानि और लाभ का समीकरण

सुनती थी क्षण-भंगुर है मीठे समीर की हर मीठी झकोर

पर "अनन्त" भी धूल के बवन्डर-सा भंगुर है

क्या करूँ ... मेरे साँवले हुए प्यार ने यह कभी सोचा न…

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Added by vijay nikore on November 9, 2018 at 6:30am — 6 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६७

1212 1122 1212 22

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हमारी रात उजालों से ख़ाली आई है

बड़ी उदास ये अबके दिवाली आई है //१



चमन उदास है कुछ यूँ ग़ुबारे हिज्राँ में

कली भी शाख़ पे ख़ुशबू से ख़ाली आई है //२ 




फ़ज़ा ख़मोश है घर की, अमा है सीने में

हमारा सोग मनाने रुदाली आई है //३ 



मवेशी खा गए या फिर है मारा पालों ने

कभी कभार ही फ़सलों पे बाली आई है…

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Added by राज़ नवादवी on November 7, 2018 at 12:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल -- नेकियाँ तो आपकी सारी भुला दी जाएँगी / दिनेश कुमार

2122---2122---2122---212

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नेकियाँ तो आपकी सारी भुला दी जाएँगी

ग़लतियाँ राई भी हों, पर्वत बना दी जाएँगी

.

रौशनी दरकार होगी जब भी महलों को ज़रा

शह्र की सब झुग्गियाँ पल में जला दी जाएँगी

.

फिर कोई तस्वीर हाकिम को लगी है आइना

उँगलियाँ तय हैं मुसव्विर की कटा दी जाएँगी

.

इनके अरमानों की परवा अह्ले-महफ़िल को कहाँ

सुबह होते ही सभी शमएँ बुझा दी जाएँगी

.

नाम पत्थर पर शहीदों के लिखे तो जाएँगे

हाँ, मगर क़ुर्बानियाँ उनकी भुला दी…

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Added by दिनेश कुमार on November 7, 2018 at 10:22am — 15 Comments

जलूँ  कैसे  तुम्हारे बिन - लक्ष्मण धामी"मुसाफिर" ( गजल )

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

अकेला हार जाऊँगा, जरा तुम साथ आओ तो

अमा की रात लम्बी है कोई दीपक जलाओ तो।१।



ये बाहर का अँधेरा तो  घड़ी भर के लिए है बस

सघन तम अंतसों में जो उसे आओ मिटाओ तो।२।



कहा बाती  मुझे  लेकिन  जलूँ  कैसे  तुम्हारे बिन

भले माटी, स्वयं को अब चलो दीपक बनाओ तो।३।



गरीबी, भूख,  नफरत, वासनाओं  का मिटेगा तम

इन्हें जड़ से मिटाने को सभी नित कर बटाओ तो।४।



महज दस्तूर को दीपक जलाते इस अमा को सब

बने हर जन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2018 at 7:36am — 13 Comments

ग़ज़ल (ख़त्म कर के ही मुहब्बत का सफ़र जाऊंगा)

(फाइ इलातु न _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फ़े लुन)

ख़त्म कर के ही मुहब्बत  का सफ़र जाऊंगा l

तू ने ठुकराया तो कूचे में ही मर जाऊँगा l

जो भी कहना है वो कह दीजिए ख़ामोश हैं क्यूँ

आपका फ़ैसला सुनके ही मैं घर जाऊँगा l

वकते आख़िर है मेरा पर्दा हटा दे अब तो

छोड़ कर मैं तेरे चहरे पे नज़र जाऊँगा l

आ गए वक़ते सितम अश्क अगर आँखों में

मैं सितमगर की निगाहों से उतर जाऊँगा l

लौट कर आऊंगा मैं सिर्फ़ तू इतना कह दे …

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 6, 2018 at 10:30am — 20 Comments

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