2122 2122 2122 2
चुप रहीं आँखें सजल ने कुछ नहीं बोला
इसलिए मनवा विकल ने कुछ नहीं बोला
भाव जितने हैं सभी को लिख दिया हमदम
क्या कहूँ! तुमसे ग़ज़ल ने कुछ नहीं बोला?
जिस किनारे बैठ के पहरों तुम्हें सोचूँ
उस जलाशय के कमल ने कुछ नहीं बोला?
एक पत्थर झील में फेंका कि जुम्बिश हो
झील के खामोश जल ने कुछ नहीं बोला
साथ 'ब्रज' के रात भर पल पल रहे जलते
जुगनुओं के नेक दल ने…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 19, 2020 at 9:00pm — 6 Comments
मुफाईलुन*4
खरीदूँ कौन सी सब्जी बड़े लगते झमेले हैं
कहीं लौकी कहीं कद्दू कहीं कटहल के ठेले हैं
इधर भिन्डी बड़ी शर्मो हया से मुस्कुराती है
अजब नखरे टमाटर के पड़ोसी कच्चे केले हैं
तुनक में मिर्च बोली आ तुझे जलवा दिखाती हूँ
कहे धनिया हमें भी साथ ले लो हम अकेले हैं
शकरकंदी,चुकंदर ने सजाई नाज से महफ़िल
सुनाया राग आलू ने मगन बैगन,करेले हैं
घड़ी भर को जरा पहलु में लहसुन,प्याज आ बैठो
जुदाई में तुम्हारी 'ब्रज' ने…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2020 at 8:00pm — 7 Comments
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