आसमाँ के देखता है ख्वाब आम आदमी
चाहता है माहो-आफताब आम आदमी
खुद चुभन सहे मगर करे नहीं वो उफ़ तलक
कायनाते खार में गुलाब आम आदमी
रात दिन गुजारता है धूप छाँव भूल कर
काम कर रहा है बेहिसाब आम आदमी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 30, 2012 at 3:30pm — 8 Comments
===========ग़ज़ल=============
बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ
वज्न- २ २ १ - २ १ २ १ - १ २ २ १ - २ १ २
चेह्रा है आपका या हसीं माहताब है
ये नाजुकी बदन की बड़ी लाजबाब है
गोरा बदन है ऐसे के छू लें तो सुर्ख हो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 4, 2012 at 4:50pm — 6 Comments
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