न जग तेरा है .....
न जग तेरा है न मेरा है
बस दो साँसों का डेरा है
है पल भर की बस भोर यहां
पल अगला घोर अँधेरा है
न जग तेरा है ....
मैं पथ का कोई शूल कहूँ
या जीवन कोई भूल कहूँ
इक पल यहाँ पर है उत्सव
पल दूजा दुख का डेरा है
न जग तेरा है ....
स्वर प्रेम नीड को ढूंढ रहे
दृग पीर नीर में मूँद रहे
है नीरवता हर ओर यहां
विष सेज पे सुप्त उजेरा है
न जग तेरा है ....
अभिलाष हृदय की…
Added by Sushil Sarna on November 24, 2015 at 9:35pm — 4 Comments
कुछ एक बातें …
कुछ एक बातें ऐसी हैं
कुछ एक बातें वैसी है
होठों पर लज्जा वाली
भीगी रातों जैसी हैं
कुछ एक बातें …
हृदय के सागर पर लिखी
अमर प्रीत की बात कोई
शब्द नीड़ में जागी सोई
अलसायी बातों जैसी हैं
कुछ एक बातें …
मन के अम्बर पर कोई
दीप प्रीत के जला गया
मधुपलों की सिमटी सी
कुछ यादें मेघों जैसी हैं
कुछ एक बातें …
इक शीत बूँद अंगारों पर
तृप्ति पूर्व ही झुलस गयी
हार जीत की नैनझील पर…
Added by Sushil Sarna on November 17, 2015 at 7:21pm — 4 Comments
तुम निष्ठुर हो …
तुम निष्ठुर हो तुम निर्मम हो
तुम बे-देह हो तुम बे-मन हो
तुम पुष्प नहीं तुम शूल नहीं
तुम मधुबन हो या निर्जन हो
तुम निष्ठुर हो …
तुम विरह पंथ का क्रंदन हो
तुम सृष्टि भाल का चंदन हो
तुम आदि-अंत के साक्षी हो
तुम वक्र दृष्टि की कंपन्न हो
तुम निष्ठुर हो …
तुम नीर नहीं समीर नहीं
तुम हर्ष नहीं तुम पीर नहीं
तुम हर दृष्टि से ओझल हो
तुम रखते कोई शरीर नहीं
तुम निष्ठुर हो …
तुम चलो तो सांसें चलती…
Added by Sushil Sarna on November 14, 2015 at 8:13pm — 13 Comments
अमर गंध …
पी के संग सो गयी
पी के रंग हो गयी
प्रीत की डोर की
मैं पतंग हो गयी
दीप जलता रहा
सांस चलती रही
पी की बाहों में मैं
इक उमंग हो गयी
हर स्पर्श देह में
गीत भरता रहा
नैनों की झील की
मैं तरंग हो गयी
निशा ढलती रही
आँखें मलती रही
होठों की होठों से
एक जंग हो गयी
कुछ खबर न हुई
कब सहर हो गयी
साँसों में पी की मैं
अमर गंध हो गयी
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on November 5, 2015 at 4:18pm — 6 Comments
कैसे अपने मधु पलों को शूल शैय्या पे छोड़ आऊँ
स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊं
विगत पलों के अवगुंठन में
इक दीप अधूरा जलता रहा
अधरों पर लज्जा शेष रही
नैनों में स्वप्न मचलता रहा
एकांत पलों में तृप्ति भाव को किस आँगन मैं छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ
अधरों से मिलना अधरों का
तिमिर का मौन शृंगार हुआ
तृषित देह का देह मिलन से
अंगार पलों का संचार हुआ
किस पल को मैं बना के जुगनू तिमिर…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 4, 2015 at 7:30pm — 27 Comments
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