झूठ-सत्य के दो पलड़ों पर
टँगी हुई उम्मीदों बोलो-
कब तक झूलोगी ?
अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर
पाने की आवारा ज़िद में-
क्या-क्या भूलोगी ?
शब्दों की प्यासी बन कर तुम
चीख मौन की झुठलाती हो
बोलो आखिर क्यों ?
मनगढ़ मीठी बातें रखकर
खारापन बस तौल रही हो
इतनी शातिर क्यों…
Added by Dr.Prachi Singh on December 9, 2017 at 10:36am — 3 Comments
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